Book Title: Bhagavana Adinath
Author(s): Vasant Jain Shastri
Publisher: Anil Pocket Books

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Page 19
________________ प्रत्येक वस्तु आज महारानी मरुदेवी को आनन्द की मौज मे लह'राती मदमाती और नाचती दृष्टिगत हो रही थी। तभी... 'महारानी मरुदेवी जी की जय हो ।' 'आप ? • आपका परिचय?' 'हम स्वर्ग की देविया है । महाराज इन्द्र की आज्ञा से हम आपकी सेवा मे रहने को आई हुई है। आप हमे स्वीकार कीजिए और आज्ञा प्रदान कीजिये कि हम आपकी सेवा कर सके। 'अरे !... "पर आपको ...."अर्थात इन्द्र महाराज को कैसे मालूम .... 'आप आश्चर्य ना करिये राज रानी जी | महाराज इन्द्र को अवधिज्ञान से सब कुछ मालूम हो गया है। आपके पवित्र गर्भ मे ज्योही भगवान ऋषभदेव का अवतरण हुआ कि उनका श्रासन हिल गया और अपने अवधिज्ञान से जान लिया कि आपके पवित्र गर्भ मे भगवान ने शरीर धारण कर लिया है।' महाराज नाभि ने अपनी भाग्यशालिनी रानी के मुख की तरफ मुस्कराते हुये देखा । रानी अपने आप मे प्रसन्नता से भरी जा रही थी । ज्यो ही महाराज की निगाह से निगाह मिली त्यो ही रानी और भी पुलकित हो उठी। क्षण बोता, पल बीता, घडी बीती और दिन वीता। समय कितना व्यतीत हो गया-यह मालूम ही न हो सका । रानी मरुदेवी का गर्भ वढ रहा था और उधर पृथ्वी पर नया रंग छा रहा था । देवियाँ-सदैव महारानी के साथ रहती । हास्य, अध्ययन कौतुक आदि के द्वारा गर्भवती रानी का दिल बहलाया करती।। ___ आज महारानी अपने आपको महान ज्ञानवति, वलवति और विचारक देख रही थी। कभी कभी तो वह आश्चर्य कर बैठती कि मुझमे इतना सब कुछ पा कहा से गया ? तभी देविया समाधान

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