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( ४८ ) भगवान आदि नाथ का यह जीवन समय पूर्वार्ध से गुजर रहा था। निलाजना का नृत्य और निलाजना की अकस्मात मृत्यु ने आदि नाथ को अपनी याद दिला दी । आज भगवान आदिनाथ यही सब कुछ सोच रहे थे ।
सोच रहे थे कि मेरे जीवन का पूर्व समाप्त होने जा रहा है । भरत बाहुवली का अभी पूर्वार्ध का प्रारम्भिक काल है। मुझे आध्यात्मिक पुरुपाथ करना श्रेयक र है । राज्य कार्य अव भरत और बाहुबली कुशलता के साथ कर सकते है । उन्हे अपने शौर्य का सपउपयोग करना भी चाहिए। ___भगवान आदिनाथ के वैराग्य वर्धक विचारो मे जागृति होती जा रही थी। लौकान्तिक देवो ने अाकर और भी विशेष जागृति की। ससार की क्षरण भगुरता का एक वैराग्य वर्धक चित्र देवो ने आदिनाथ भगवान के समक्ष प्रस्तुत किया। जिसके फल स्वरुप आदिनाथ भगवान को अवशेष भी दृष्टिगत होने लग्ग। ___ज्ञान की ओर वैराग्य की मिली-जुली मिश्रित धारा मे सारा वातावरण बह रहा था। आज सारा समाज आदि नाथ के विचार मे खो रहा था। ___समय को व्यर्थ न जाने देने के विचार से भरत और बाहुबली की ओर स्नेह की दृष्टि से देखा । दोनो पुत्र नम्र हो विनीत भावो से पूज्य पिता के चरणो की ओर निहार रहे थे । आदिनाथ ने अपना साम्राज्य पद विभूपित मुकुट सभी सभासदो, देवगणो के समक्ष भरत के सिर पर रखा ।
चारो मोर दुन्दुभि बज उठी । जय जय कार हो उठी । भरत देखता का देखता ही रह गया । नम्रीभूत हो द्रवित वाणी से भरत बोला
"भगवान | यह आपने क्या किया?" "उचित ही किया है भरत । "किन्तु प्रभो । मैं इस योग्य.....