Book Title: Bhagavana Adinath
Author(s): Vasant Jain Shastri
Publisher: Anil Pocket Books

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Page 172
________________ १४-पत्नी की पति भक्ति और शील-शक्ति 44 महाराज मरत अपने ही दरवार में विराजे हुए थे। तभी द्वारपाल ने दूत पाने की सूचना दी। वाराणसी के राजा अकम्पन और जयकुमार दोनो ने मना करके मागलिक परिणय देता की समाप्ति की सूचना निवेदन करने को रत्नादि भेट देकर अपने सुपोय दूत को परवर्ती भरत की सेवा में भेजा था। ___ रत्नादि भेद केलाय दूत, अत्यन्त नत्रता एप शिष्टता से प्रोत प्रोत हो-नवती भरत के समक्ष उपस्थित हुन। उसने मुझे हुए नेत्रों को धीरे-धीरे जार रुपया और मत्ता नुकाकर घर छुए फिर एक और नतमस्तक हो खड़ा हो गया। ___ "च्या सदेश लाए हो । महाराज पम्पन परिवार सहित कुशल तो है ?" पवर्ती भरत ने नुलराते हुए प्रिय वाणी से पूछा । जैसे फूल कर गए हो, अमृत बरस गया हो-को प्रसार मानन्द को मानकर दूतने निवेदन निया___ "प्रभो ! महाराज सम्पन ने अपनी प्रिय पुत्रो सुलोचना का विवाह स्वयम्बर विधि से जयकुमार जी के साथ सम्पन्न करा दिया है।' "कोन जयकुनार?' "लापके ही चरण सेवन, विज्यो सेनापति जी।'

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