Book Title: Bhagavana Adinath
Author(s): Vasant Jain Shastri
Publisher: Anil Pocket Books

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Page 174
________________ (१५२ ) पराई हो चुकी थी और घोषणा के अनुसार जयकुमार जो की पत्नी कहला चुकी थी. इस पर जयकुमार जी ने राजकुमार अर्ककीर्ति जी को बहुत समभाया उनके सामने अपनी सेवकता भी प्रकट की • पर पर" "मोह ।..." भरत का दिल इस वर्णन पर कसमता उठा। ___"प्रभो । इस अमगल से महाराज, प्रकम्पन भी दुखी हुए और सबसे ज्यादा दुख तो उन्हें इस बात का हुआ कि उन्हे आपके प्रिय पुत्र के साथ युद्ध करना पडा। हे प्रभो । इसीलिए उन्होंने क्षमा की याचना की है।" - दूत यह सब निवेदन करके एक और नम्रता से खडा रह गया । महाराज भरत ने एक दुखभरी दीर्घ स्वांस छोडी ... बोले ... ___"इसमे महाराज अकम्पन का कोई अपराध नहीं । अपराध तो मेरे पुत्र का है और क्षमा मुझे मागनी चाहिए | उनसे कहना कि'हे राजन ! आपतो हमारे पूज्य हो | आपने हमारे कुल की लाज रखकर अपराधी को भी गले लगाया। वास्तव मे हम बहुत लज्जित हैं। आगे और कहना कि आप धन्य है जिन्होंने इस युग मे स्वयम्बर विधि की सर्वप्रथम स्थापना की है। यह परम्परा बहुत ही सुन्दर और सुखद है। महाराज अकम्पन को धन्यवाद, और नव दम्पति को हमारा स्नेह भरा आर्शीवाद कहना।" अनेक बार मस्तक मुकाता हुआ दूत रवाना हुआ। प्रसन्नता भरा, खुशियो से झोली भरी लेकर अत्यन्त उत्साह और उमग के साथ दूत राजा अकम्पन के पास पहूँचा । जब

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