Book Title: Bhagavana Adinath
Author(s): Vasant Jain Shastri
Publisher: Anil Pocket Books

View full book text
Previous | Next

Page 179
________________ ( १७७ ) जयकुमार ने पीछे फिरकर देखा-सुलोचना रथ से उतरकर पानी मे तैरती आ रही है। वहीं से जयकुमार चिल्ला उठा। "सुलोचना ..आगे मत वढो । बहुत गहरी भंवर है। देखो इस भंवर मे तो हायी के पैर भी नहीं टिकते।" ___ उधर सुलोचना असह्य दुख से तडप उठी । आज उसका सौभाग्य सकट मे घिरा हुआ है..... उसकी मांग का सिन्दुर गगा की धार से मिलता दिखाई दे रहा है- उसके मेहन्दी रचे हाय का रंग फीका पडता नजर आ रहा है • सुलोचना काप उठी, तडपउठी, और रो उठी।। तभी उसके अन्तर्मन ने पुकारा ....."कायर कही की। इस प्रकार रोने से, घबराने से, और तडपने से भी कोई साहस कर सका है। अरी ! तू महान नारी है। सतीत्व की भरी पूरी है-तू चाहे तो इन्द्र का आतन भी डिगा दे। . .. तू अपनी वास्तविकता को त्यो भूली जा रही है." हिम्मत कर ..... और अपनी आराधना से बचाले अपने पति को ," सुलोचना को जैसे होश आया । वह अन्तर मन हो अपने ईप्ट के चिन्तन मे खो गई । वह भक्ति के उस स्थल पर पहुँच गई जहा भक्त व भगवान में कोई अन्तर ही नहीं रहता। गगा कहा है, पानी कितना है, उसका पति कहा है ? वह कहा है ? आदि से वह परे थी। पानी के बीच खडी भी वह मन के बीच में थी । तभी ___ तभी एक हुंकार सी हुई और हायी चिंघाड मारकर भंवर से बाहर निकल गया । जयकुमार के जान मे जान आई। सभी ने जयकुमार की जय बोली ( पर सुलोचना .... सुलोचना इसकी कोई खबर नहीं थी। यह तो माराधना में लोई हुई थी।

Loading...

Page Navigation
1 ... 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195