Book Title: Bhagavana Adinath
Author(s): Vasant Jain Shastri
Publisher: Anil Pocket Books

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Page 168
________________ ( १६६ ) 'नहीं । नहीं | | नही | !! हम यह तब कुछ नही सुनना चाहते। यह सब बाप बेटी की मिली भगत है । हम उस जयकुमार को भी समझ जेगे । प्रापको सुलोचना मेरे साथ व्याहनी होगी अन्यघा ***.1 'ऐसा तो ध्रुव हो ही नही सकता। आप व्यघं ही उदण्डता प्रकट कर रहे हैं ।' 'ऐमा होकर रहेगा ।।।' यह कहकर अकंकीर्ति ने र भेरी वजवा ही दो । चारो ओर से मारो, नारो, काटो, काटो, छोनो, झपटो की आवाजे आने लगी । राजा त्रकम्पन गिरते-गिरते बचे । रानी सुप्रभा व्याकुलानी हो एक और महिलाओ के समूह मे चली गई । प्रागन्तुको मे अनेको ने नर्ककीर्ती राजकुमार का साथ दिया । कुछो ने ग्रकम्पन का साथ दिया । सुलोचना ने जब रथ का परदा उठाकर घमासान युद्ध देखा तो — पति व्याकुलता से साथ जयकुमार की ओर देखने लगी। सुलोचना के मन की व्यण को जान जयकुमार मुस्करा उठे। दोने • 'घवराने वाली बात नही हैं प्रिये !" या आपको यह बात कुछ भी नही लगती ?" 'ना । *****7 'युद्ध हो रहा है, घायल हो रहे हैं, पिता जी अकेले लड रहे है और आप आप " 'मैं नव देख रहा हूँ । यह सब एक नाटक सा है और में इस नाटक को क्षण में नष्ट कर दूंगी।" अच्छा तुम निश्चिन्त होकर बैठो मैं भी जरा इन गोदडो की मनकियो को देख लेना · चाहता हूँ ।' +

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