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७ भारत का प्रथम सम्राट भरत और आदिनाथ की कैवल्य ज्योति
सम्राट भरत का राज दरबार सजा हुआ था। विशाल और सुन्दर ऊंचे सिंहाने पर भरत विराजमान थे । विशाल मण्डप मे सुन्दर और मखमली गलीचे पर मसनद लगाए हुए अनेक राजा महाराजा बैठे हुए थे । विषय 'राजनीति में सफलता' का चल रहा था। सभी राजागण अपनी-अपनी विवेक बुद्धि से अपना मन्तव्य प्रकट कर रहे थे। सम्राट भरत गम्भीरता पूर्वक प्रत्येक के मन्तव्य को सुन रहे थे। ___ दण्ड और न्याय । अपराध और अपराधी के विषय में चर्चा चलती चलती राजनीतिज्ञो के आचरण पर जा टि की थी। एक दूसरे की कमिया बताई जाने लगी थी। तभी भरत सम्राट ने अपनी प्रोज और विवेक मे रगी हुई वाणी से सबको सम्बोधन करते हुए कहा .
यदि आप सब एक दूसरे की कमिया बताते रहे तो किसी की भी कमी दूर नहीं हो सकेगी। जिन कमियो, भूलो, त्रुटियो को तुम अच्छी नहीं समझते और एक दूसरे मे छुडवाना चाहते हो तो सबसे पहले तुम्हे अपनी ओर देखना होगा । जव स्य अपनी ओर देखकर अपनी शुटि पकड लेगा और उसे निकालने को, सुधारने को, चेप्टा करेगा तो सभी को अटिया स्यत ही दूर हो सांगी।