________________
१८ भरत की दिग्विजय
अतुल और उत्साह से ओतप्रोत आनन्द की लहर ने अयोध्या ही को नहीं अपितु समस्त भूमडल को आनन्दित कर दिया । चारो ओर खुशिया ही खुशिया छा रही थी।
इधर भरत सम्राट ने अपने चक्ररत्न की पूजा की। सेना द्वारा विविध आयोजन हुए। सेना का उत्साह अनन्त गुणा बढ गया । प्रत्येक सैनिक के चहरे पर तेज, हृदय मे उमग, मन मे उत्साह, शरीर मे स्फूर्ति और पांवो मे दृढता के साथ चचलता चमक उठी थी।
उधर पुत्ररत्न के जन्मोत्सव का कार्यक्रम अपनी रगरगात्मक शैली के साथ हो रहा था । याचको को दान, देवालयो मे पूजा, राज भवन मे मगल गीत, नृत्य, आदि के प्रानन्द दायक कार्य हो
रहे थे।
उत्साह ही उत्साह । उमग ही उमग । अानन्द ही आनन्द।
जिधर दृष्टि जाती है प्राज अयोध्या मे उघर ही प्रसन्नता से भरे चेहरो पर से मुस्कराहट के पुष्प बिखर रहे थे । नव नवेली महिलाऐ आज परिया लग रही थी । वच्चा बच्चा फुदक रहा था, वृद्ध भी जवान हो रहे थे।
चारो ओर से भरत सम्राट की जय-जय कार बोली जा रही
थी।