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'क्या आपको भी ज्ञात नही ?"
( ४३ )
'नही तो "
'कुछ भी नही ?"
'हाँ कुछ भी नही । मात्र इतना सा भान है कि आज विशेष आनन्ददायक ग्रायोजन होने वाला है ।'
'नोह
'
तभी...
तभी मधुर वाद्य अपनी मन्द और मधुर ध्वनि मे बज उठे । सबने देखना चाहा कि यह आवाज कहाँ से मुखरित हो रही है, पर दिखाई किसी को भी नही दिया । तव सबके सामने एक रहस्य का वातावरण छा गया ।
वीणा के तार बजे, तवला बोल उठा, मृदग गूज उठी, झाझर भन्ना उठी और सभा मण्डप मधुर वाद्य की ध्वनि तथा एक मीठी सुगन्धि की सुगन्ध से सुरभित हो उठा । श्रावाज मे खोने लगे। सबके सिर ताल के साथ हथेली जधु पर थिरकने लगी ।
सब साज की हिलने लगे ।
तभी
"
,
तभी छम छम छम की ध्वनि सुनाई दी। हम हमा... छम छम छम । घुघरू की झंकार ने सबको चौका दिया । कहाँ किसके पाँव से बज रहे है ये घु परू? कौन बजा रहा है ? सब उत्सुक थे देखने को पर दिखाई ही नहीं दिया । घुघरू की ध्वनि मन्द से कुछ तेज, और तेज से कुछ और तेज होती जा रही हे ज्योज्यो तेज होती जा रही है त्यो त्यो ही सभासद देखने को विशेष उत्सुक भी हो रहे हैं ।
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तभी
हाँ तभी एक सुन्दर, सर्वाग सुन्दर, अति सुन्दर प प्रति मोहकती, गोरी सी, थिरकती हुई झप्सरा सभा मण्डप में उस सुन्दर