________________
( २४ ) तृतीय काल अर्थात सुखमा दुखमा के प्रारम्भ होते ही कल्पवृक्ष जो दस प्रकार के होते थे ( मद्याग, तूर्याङ्ग, विभूषाङ्ग, स्यगङ्ग, ज्योतिरङ्ग, दीपाङ्ग, गृहाङ्ग, भोजनाङ्ग, पात्राङ्ग और वस्त्राग) वे प्राय नष्ट से होने लगे । प्रायु, वल, घटने लगा।
परिवर्तन आगे आया । पौराणिक तथ्यो के आधार पर आषाढ शुक्ला पूर्णिमा को सायकाल के समय मे अन्तरिक्ष के दोनो भाग मे अर्थात् पूर्व एव पश्चिम मे चमकते हुये दो गोलाकार वृत्त दिखाई दिये । दोनो ही पूर्ण थे । और दोनो की चमक समान सी थी । पूर्व वाला गोलाकार चन्द्रमा एव पश्चिम वाला गोलाकार सूर्य निर्धारित किया गया । रातदिन, पक्ष, मास आदि होने लगे। ____भोगभूमि के नर नारी आश्चर्यान्वित एव भयभीत होने लगे। जो उपलब्धियां कल्पवृक्षो से सहज ही उन्हें मिल जाती थी अब वे दुर्लभ होने लगी त्यो त्यो कुलकरो ने जन्म लिया जिन्होने अपने अपने समय के अनुसार प्राणियो को और मानवो को राह दिखाई। यथा -
प्रथम कुलकर प्रतिश्रुति ने सूर्य और चद्रमा से भयभीत मानव का भय दूर कर दिया । द्वितीय कुलकर सन्मति ने गगन मडल पर चमकते तारो का रहस्म समझाया। तृतीय कुलकर क्षेमकर ने मानव कल्याण का पथ दर्शाया । चतुर्थ कुलकर क्षेमधर ने शाति पथ एव कार्य प्रदर्शित किया। पचम कुलकर सीमकर ने प्रार्य पुरुषो की सीमा नियत की। छठे कुलकर सीमधर ने कल्पवृक्षो की सीमा निश्चित की । सातवे कुलकर विमलवान ने हाथी, घोडे, ऊँट आदि पर सवारी करने का उपदेश दिया। पाठवे कुलकर ने पुत्र का मुख देखने की परम्परा चलाई । अर्थात इस ममय मे माता पिता पुत्रजन्म के बाद मरते नहीं थे पर जीवित हो रहते थे।
समय और आगे बटा। परिवर्तन और परिवर्तित होने लगा तो नौवें कुलकर यशस्वान् हुये दसवें अभिचन्द्र ग्यारहवे चन्द्राम