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भगवान आदिनाथ ने मानव की अनविज्ञता को देखकर प्रश्न विशिष्ट ज्ञान के द्वारा सप्टि की रचना का विचार किया । विशेप मार्ग होना होता ही है तो स्वर्ग में देव भी उत्सुक है जाते हैं अत श्रृष्टि-रचना में सहयोग देने के लिये इन्द्र और र भी यादिनाथ की सेवा मे पा खड हुये ।
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भगवान आदिनाथ ने सर्वप्रथम ग्राम की रचना का उपदेश दिया, फिर नगर, फिर राजधानी और फिर राजा का उपदेश दिया ! वैसी ही रचना भी होने लगी।
भगवान आदिनाथ ने मानव को असि, मपि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और गिल्प ये छह कार्य मानव की आजीविका के लय बताये । और प्रत्येक को क्रियाओ से उन्हे बोधित किया ।
उन्होने मानव को क्रिया दृष्टि से तीन भागो में वाट दिया। यथा--