Book Title: Baras Anupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vidyasagar, Chunilal Desai, Atmanandji Maharaj Maharaj
Publisher: Satshrut Sadhna Kendra

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Page 12
________________ अथ अनित्यभावना वरभवणजाणवाहणसयणासण देवमणुवरायाणं । मादुपिदुसजणभिच्चसंबंधिणो य पिदिवियाणिच्चा || ३ || सर्वोत्तमा भवन वाहन यान सारे, ये आसनादि शयनादिक प्राण प्यारे । माता पिता स्वजन सेवक दास दासी, राजा प्रजाजन सुरेश विनाश राशी ||३|| (हरिगीत) મનુ દેવ રાજનના મહેલ રથ શયન આસન વાહનો, માતા પિતા સ્ત્રી સ્વજન દાસ અનિત્ય સર્વ સંબંધીઓ. ૩ अर्थ- देवताओंके, मनुष्योंके और राजाओंके सुन्दर महल, यान, वाहन, सेज, आसन, माता, पिता, कुटुम्बीजन, सेवक, सम्बन्धी ( रिश्तेदार) ओर काका आदि सब अनित्य हैं अर्थात् ये कोई सदा रहेनेवाले नहीं हैं। भवधि बीतनेपर सब अलग हो जावेंगे। देवताखो, मनुष्यो भने राभखोना सुन्दर भडेल, यान, वार्डन, सेन, खासन, માતા, પિતા, કુટુંબીજન, સેવક, સંબંધી અને કાકા વગેરે સર્વ અનિત્ય છે. અર્થાત્ આ કોઈ કાયમ ટકવાનાં નથી. સમય પૂરો થયે બધાં અલગ થઈ જશે. ८ बारस अणुवेक्खा

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