Book Title: Baras Anupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vidyasagar, Chunilal Desai, Atmanandji Maharaj Maharaj
Publisher: Satshrut Sadhna Kendra
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अथ अशरणभावना
मणिसंतोसहरक्खा हयगयरहओ य सयलविज्जाओ । जीवाणं ण हि सरणं तिसु लोए मरणसमयम्हि ||८||
छोडे बडे रथ खड़े मणि मंत्र हाथी,
विद्या दवा सकल रक्षक संग साथी || पै मृत्युके समयमें जगमें हमारे, होंगे नहीं शरण ये बुध यों विचारे ||८|||
નહિ મરણ સમયે જીવને કોઈ શરણ ત્રણ લોકમાં,
રથ હાથી ઘોડા રક્ષકો ણિ મંત્ર ઔષધિ બોધિમાં. ૮
अर्थ- मरते समय प्राणीयोंको तीनों लोकोंमें मणि, मंत्र, औषधि, रक्षक, घोडा, हाथी, रथ और जितनी विद्याएं हैं, वे कोइ भी शरण नहीं हैं । अर्थात् ये सब उन्हें मरनेसे नहीं बचा सकते हैं ।
भराग समये छपोने भाग सोड़मां रथ, हाथी, घोडा, रक्षको, भाग, मंत्र, धा, ઔષધિ આદિ કોઈ પણ શરણ નથી.
बारस अणुवेक्खा १३