Book Title: Baras Anupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vidyasagar, Chunilal Desai, Atmanandji Maharaj Maharaj
Publisher: Satshrut Sadhna Kendra

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Page 36
________________ काल परिवर्तनका स्वरूप अवसप्पिणिउस्सप्पिणिसमयावलियासु णिरवसेसासु । जादो मुदो य बहुसो परिभमिदो कालसंसारे ॥२७॥ उतसर्पिणि व अवसर्पिणिकी अनेकों, कालावलि बरतती अयि भव्य देखो । यों जन्म मृत्यु उनमें बहु बार पाये, , हो मूढ काल परिवर्तन भी कराये ॥२७॥ ઉત્સર્પિ જીવ અવસર્પિણીના અનેક કલાવલિ સતત સંચરતી વિમંગે આ જન્મ-મૃત્યુ ઘટમાળ મહીં ડૂળ્યો છું હે મૂઢ! કોળિયો કાળ તણો થયો છું. ૨૭ अर्थ- कालपरिवर्तनरूप संसारमें भ्रमण करता हुआ जीव उत्सर्पिणी अवसर्पिणी कालके सम्पूर्ण समयों और आवलियोंमें अनेक वार जन्म धारण करता है और मरता है। भावार्थ- उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी कालके जितने समय होते हैं, उन सारे समयोंमें क्रमसे जन्म लेने और मरनेको कालपरावर्तन कहते हैं। કાલપરિવર્તનરૂપ સંસારમાં ભ્રમણ કરતો જીવ ઉત્સપિણી અવસર્પિણી કાળનાં સંપૂર્ણ સમયો અને આવલિઓમાં અનેક વાર જન્મ-મરણ કરી ચૂક્યો છે. ३२ बारस अणुवेक्खा

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