Book Title: Baras Anupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vidyasagar, Chunilal Desai, Atmanandji Maharaj Maharaj
Publisher: Satshrut Sadhna Kendra

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Page 102
________________ भ. कुन्दकुन्दाचार्य-स्तुति वन्द्यो विभुर्भुवि न कैरिह कौण्डकुन्दः कुन्दप्रभा-प्रणयि-कीर्ति-विभूषिताशः / यश्चारु चारण कराम्बुजचञ्चरीकश्चक्रे श्रुतस्य भरते प्रयतः प्रतिष्ठाम् // (चन्द्रगिरि पर्वतका शिलालेख) कुन्दपुष्पकी शोभाको धारण करनेवाली जिनकी कीर्तिसे दिशाएं विभूषित हुई हैं, जो चरणोंके - चारणऋद्धिधारी महामुनियोंके - सुन्दर हस्तकमलोंके भ्रमर थे और जिन पवित्रात्माने भरतक्षेत्रमें श्रुतकी प्रतिष्ठा की है, वे विभु कुन्दकुन्द इस पृथ्वी पर किसके द्वारा वंदनीय नहीं ? हे कुन्दकुन्दादि आचार्यों ! आपके वचन भी स्वरूपानुसंधानमें इस पामरको परम उपकारभूत हुए हैं इसके लिए आपको अतिशय भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूं। - श्रीमद् राजचन्द्र जासके मुखारविन्द प्रकास भास वृन्द स्यादवाद जैन बैन इंद कुन्दकुन्दसे तासके अभ्यासतें विकास भेदज्ञान होत मूढ सो लखै नहीं कुबुद्धि कुन्दकुन्दसे / देत हैं असीस सीस नाय इंद चंद जाहि मोह-मार-खंड-मारतंड कुन्दकुन्दसे विसुद्धि-बुद्धि-वृद्धिदा प्रसिद्ध-रिद्धि-सिद्धिदा हुए न हैं न होहिंगे मुनिंद कुन्दकुन्दसे // - कविवर वृन्दावन

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