Book Title: Baras Anupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vidyasagar, Chunilal Desai, Atmanandji Maharaj Maharaj
Publisher: Satshrut Sadhna Kendra

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Page 73
________________ सुद्धवजोगेण पुणो धम्म सुक्कं च होदि जीवस्स । तम्हा संवरहेदू झाणोत्ति विचिंतये णिच्चं ॥६४॥ शुद्धोपयोग बल वो मिलता जिसे है, तो धर्म शुक्लमय ध्यान मिले उसे है । है ध्यान हेतु विधि संवरका इसीसे, ऐसा करो सतत चिंतन भी रुची से ॥६४।। શુદ્ધોપયોગે ધ્યાન શુક્લ ધર્મ જીવને થાય છે, તેથી નિરંતર સંવરોનું ધ્યાન કારણ થાય છે. ૬૪ अर्थ- इसके पश्चात् शुद्धोपयोगसे जीवके धर्मध्यान और शुक्लध्यान होते हैं। इसलिये संवरका कारण ध्यान है, ऐसा निरन्तर विचारते रहना चाहिये। भावार्थ- उत्तम क्षमादिरूप दश धर्मोके चिन्तवन करनेको धर्मध्यान कहते हैं और बाह्य परद्रव्योंके मिलापसे रहित केवल शुद्धात्माके ध्यानको शुक्लध्यान कहते हैं। इन दोनों ध्यानोंसे ही संवर होता है। વળી શુદ્ધોપયોગથી જીવને ધર્મધ્યાન અને શુક્લધ્યાન થાય છે. તેથી સંવરનું કારણ ધ્યાન છે, એમ નિરંતર વિચારવા યોગ્ય છે. बारस अणुवेक्खा ६९

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