Book Title: Baras Anupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vidyasagar, Chunilal Desai, Atmanandji Maharaj Maharaj
Publisher: Satshrut Sadhna Kendra
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किं पलवियेण बहुणा जे सिद्धा णरवरा गये काले । . सेझंति य जे (भ) विया तज्जाणह तस्स माहप्पं ॥१०॥
जो भी हुए विगतमें शिव और आगे-, होंगे नितान्त पुरषोत्तम और जागे । माहात्म्यमात्र वह द्वादश भावनाका, क्या अर्थ है अब सुदीर्घ प्ररूपणाका ॥९०।।
ભૂતકાલ જે ગતિ સિદ્ધ પામ્યા ને ભવિષ્ય પામશે, મહિમા જ દ્વાદશ ભાવનો ચુનિભાવશે તે પામશે. ૯૦
अर्थ- इस विषयमें अधिक कहनेकी जरूरत नहीं है। इतना ही बहुत है कि भूतकालमें जितने श्रेष्ठपुरुष सिद्ध हुए हैं और जो आगे होंगे वे सब इन्हीं भावनाओंका चितवन करके ही हुए हैं। इसे भावनाओंका ही माहात्म्य समझना चाहिये।
ભૂતકાળમાં જેટલા શ્રેષ્ઠ પુરુષો સિદ્ધ થયા છે અને ભવિષ્યમાં જે સિદ્ધ થશે છે તે આ ભાવનાનું માહાત્મ છે.
बारस अणुवेक्खा ९५