Book Title: Baras Anupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vidyasagar, Chunilal Desai, Atmanandji Maharaj Maharaj
Publisher: Satshrut Sadhna Kendra

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Page 71
________________ पंचमहव्वयमणसा अविरमणणिरोहणं हवे णियमा । कोहादिआसवाणं दाराणि कसायरहियपल्लगेहिं(?)॥६॥ पाले मुनीश-मन पंच महाव्रतोंको,. रोके सही अविरतीमय आम्रवोंको । जो निष्कषायमय पावन भाव धारे, रोके कषायमय आस्रव द्वार सारे ॥६२।। વ્રત અહિંસાદિકથી ખરે અવિરમણ રોકાય છે, બંધ દ્વાર આસવનાં બધાં યમ નિષ્કષાયે થાય છે. દર अर्थ- अहिंसादि पांच महाव्रतरूप परिणामोंसे नियमपूर्वक हिंसादि पांचों अव्रतोंका आगमन रुक जाता है और क्रोधादि कषायरहित परिणामोंसे क्रोधादि । आम्रवोंके द्वार बन्द हो जाते हैं। भावार्थ- पांच महाव्रतोंसे पांच पापोंका संवर होता है और कषायोंके रोकनेसे कषाय संवर होता है। અહિંસાદિ પાંચ મહાવ્રતરૂપ પરિણામોથી હિંસાદિ પાંચ આગ્નવોનું આગમન નિશ્ચયપૂર્વક રોકાય છે અને કોંધાદિ કષાયરહિત આસવોના દ્વાર બંધ થઈ શકે છે. बारस अणुवेक्खा ६७

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