Book Title: Baras Anupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vidyasagar, Chunilal Desai, Atmanandji Maharaj Maharaj
Publisher: Satshrut Sadhna Kendra

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Page 90
________________ सावयधम्मं चत्ता जदिधम्मे जो हु वट्टए जीवो । सो ण य वज्जदि मोक्खं धम्म इदि चिंतये णिच्चं ॥८॥ सागार धर्म तज के अनगार होते, शास्त्रानुसार यतिके व्रतसार जोते । रीते रहे न शिवसे अनिवार्य पाते, यों धर्म चिंतन करो अयि ! आर्य तातें ॥८॥ (२०ीत) તજી ગૃહસ્થ ધર્મ મુનિ ધરમ સમ્યક પ્રકારે પાળતો, પ્રાપ્તિ કરે તે મોક્ષની જે ધર્મ નિત્ય વિચારતો. ૮૧ अर्थ- जो जीव श्रावकधर्मको छोडकर मुनियोंके धर्मका आचरण करता है, वह मोक्षको पा लेता है, इस प्रकार धर्मभावनाका सदा ही चिन्तवन करते रहना चाहिये। भावार्थ- यद्यपि परम्परासे श्रावकधर्म भी मोक्षका कारण है, परन्तु वास्तवमें मुनिधर्मसे ही साक्षात् मोक्ष होता है, इसलिये इसे ही धारण करनेका उपदेश दिया है। જે જીવ શ્રાવક ધર્મ છોડી યતિધર્મ આચરે છે, તે મોક્ષને પ્રાપ્ત કરે છે. એમ | ધર્મ ભાવનાનું સદા ચિંતવન કરવું. ८६ बारस अणुवेक्खा

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