Book Title: Baras Anupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vidyasagar, Chunilal Desai, Atmanandji Maharaj Maharaj
Publisher: Satshrut Sadhna Kendra

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Page 38
________________ भाव परिवर्तनका स्वरूप सव्वे पयडिट्ठिदिओ अणुभागप्पदेसबंधठाणाणि । जीवो मिच्छत्तवसा भमिदो पुण भावसंसारे ॥२९।। लो सर्व कर्म स्थिति यों अनुभाग बंधो, बांधे प्रदेश विधिके सुन भव्य बंधो ! मिथ्यात्वके वश हुए भवमें भ्रमाये, ऐसे अनंत भव भावमयी बिताये ।।२९।। હા! સર્વ કર્મસ્થિતિને અનુભાગબંધો. --wiया प्रदेश विधिना सुर (मप्य पा; મિથ્યાત્વને વશ થઈ ભવમાં ભ્રમાયો, આવા અનંત ભવ ભાવમયી કમાયો. ર૯ अर्थ- इस जीवने मिथ्यात्वके वशमें पड़कर प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशबंधके कारणभूत जितने प्रकारके परिणाम वा भाव हैं, उन सबको अनुभव करते हुए भावपरावर्तनरूप संसारमें अनेक वार भ्रमण किया है। भावार्थकर्मबंधोंके करनेवाले जितने प्रकारके भाव होते हैं, उन सबको क्रमसे अनुभव करनेको भावपरावर्तन कहते हैं। આ જીવે મિથ્યાત્વને વશ થઈને પ્રકૃતિ, સ્થિતિ, અનુભાગ અને પ્રદેશબંધના કારણભૂત જેટલાં પ્રકારનાં પરિણામ કે ભાવ છે, તે સર્વનો અનુભવ કરીને ભાવ પરાવર્તનરૂપ સંસારમાં અનેક્વાર પરિભ્રમણ કર્યું છે. ३४ बारस अणुवेक्खा

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