Book Title: Baras Anupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vidyasagar, Chunilal Desai, Atmanandji Maharaj Maharaj
Publisher: Satshrut Sadhna Kendra
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दुग्गंधं बीभत्थं कलिमल(?) भरिदं अचेयणो मुत्तं । सडणपडणं सहावं देहं इदि चिंतये णिच्चं ॥४४॥
बीभत्स है तन अचेतन है विनाशी, दुर्गन्ध मांसमलका घर रूपराशी । धारा स्वभाव सडना गलना सदा ही, ऐसा सुचिंतन करो शिव-राह-राही ॥४४।।
દુર્ગંધમય બીભત્સ તન મળમૂત્રથી ભરપૂર છે, જડ મૂર્ત પતન સ્કૂલનશીલ નિત ભાવનાની જરૂર છે. ૪૪
अर्थ- यह देह दुर्गधमय है, डरावनी है, मलमूत्रसे भरी हुई है, जड है, मूर्तीक (रूप, रस, गंध, स्पर्शवाली )है और क्षीण होनेवाली तथा विनाशीक स्वभाववाली है, इस तरह निरन्तर इसका विचार करते रहना चाहिये।
આ દેહ દુર્ગમય, બીભત્સ (ચીતરી ચડે તેવો) અનિષ્ટતમ, મૂત્રથી ભરપૂર, | १७, भूति छ भने २५पन (पतन) समावी छ, मेम सह ति१५॥ योय छे.
बारस अणुवेक्खा ४९