Book Title: Baras Anupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vidyasagar, Chunilal Desai, Atmanandji Maharaj Maharaj
Publisher: Satshrut Sadhna Kendra

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Page 18
________________ सग्गो हवे हि दुग्गं भिच्चा देवा य पहरणं वज्जं । अइरावणो गइंदो इंदस्स ण विज्जदे सरणं ॥९॥ है स्वर्ग-दुर्ग-सुरवर्ग सुभृत्य होता, है वज्र शस्त्र जिसका वह इन्द्र होता । ऐरावता गज गजेन्द्र सवार होता, ना! ना! उसे शरण अंतिम बार होता ।।९।। છે સ્વર્ગ કિલ્લો ઇન્દ્રને વળી વજનાં હથિયાર છે, ગજરાજ ઐરાવત છતાં નહિ ઈન્દ્રને કો શરણ છે. ૯ अर्थ- जिस इन्द्रके स्वर्ग तो किला है, देव नौकर चाकर हैं, वज्र हथियार है, और ऐरावत हाथी है, उसको भी कोई शरण नहीं है। अर्थात् रक्षा करनेकी ऐसी श्रेष्ठ सामग्रियोंके होते हुए भी उसे कोई नहीं बचा सकता है। फिर हे दीन पुरुषो ! तुम्हें कौन बचावेगा ? ઈન્દ્રને સ્વર્ગરૂપી કિલ્લો છે. દેવલોક જેના નોકર ચાકર છે, વજય જેનાં હથિયારો છે, અને ઐરાવત જેવો શ્રેષ્ઠ ગજેન્દ્ર છે, છતાં તેને કોઈ શરણ નથી १४ बारस अणुवेक्खा

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