Book Title: Baras Anupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vidyasagar, Chunilal Desai, Atmanandji Maharaj Maharaj
Publisher: Satshrut Sadhna Kendra

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Page 28
________________ दसणभट्टा भट्टा दंसणभट्टस्स णत्थि णिव्वाणं । सिझंति चरियभट्टा दंसणभट्टा ण सिझंति ॥१९॥ वे भ्रष्ट हैं पतित दर्शन भ्रष्ट जो हैं, निर्वाण प्राप्त करते न निजात्मको हैं । चारित्र भ्रष्ट पुनि चारित ले सिजेंगे, पै भ्रष्ट दर्शनतया नहिं वे सिजेंगे ||१९|| તે ભ્રષ્ટ છે પતિત દર્શનભ્રષ્ટ જે છે, તેને ન પ્રામિ નિર્વાણની થઈ શકે છે; यात्रिट qी प्रास पुन: रीन, . સીઝે ચરિત્ર, નહીં દર્શનભ્રષ્ટ સીઝે. ૧૯ अर्थ- जो सम्यग्दर्शनसे भ्रष्ट हैं, वे ही यथार्थमें भ्रष्ट हैं। क्योंकि दर्शनभ्रष्ट पुरुषोंका मोक्ष नहीं होता है। जो चारित्रसे भ्रष्ट हैं, वे तो सीझ जाते हैं, परन्तु जो दर्शनसे भ्रष्ट हैं, वे कभी नहीं सीझते। अभिप्राय यह है कि जो सम्यग्दृष्टी पुरुष चारित्रसे रहित हैं, वे तो अपने सम्यकत्वके प्रभावसे कभी न कभी उत्तम चारित्र धारण करके मुक्त हो जावेंगे। परन्तु जो सम्यकत्वसे रहित हैं अर्थात् जिन्हें न कभी सम्यकत्व हुआ और न जबतक होगा वे चाहे कैसा ही चारित्र पालें, परन्तु कभी सिद्ध नहीं होंगे- संसारमें रुलते ही रहेंगे। જે સમ્યકદર્શનથી ભ્રષ્ટ છે તે જ વાસ્તવમાં ભ્રષ્ટ છે કેમકે દર્શનભ્રષ્ટ પુરુષનો મોક્ષ થતો નથી. જે ચારિત્રથી ભ્રષ્ટ છે તે તો ક્યારેક સીઝી શકે છે. (પુન: ચારિત્ર ગ્રહણ કરી સિધ્ધ થઈ શકે છે.) પરંતુ જે દર્શનથી ભ્રષ્ટ છે તે ક્યારેય સીઝતા નથી. २४ बारस अणुवेक्खा

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