Book Title: Baras Anupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vidyasagar, Chunilal Desai, Atmanandji Maharaj Maharaj
Publisher: Satshrut Sadhna Kendra

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Page 31
________________ अण्णो अण्णं सोयदि मदोत्ति ममणाहगोत्ति मण्णंतो । अप्पाणं ण हु सोयदि संसारमहण्णवे बुड्ढे ॥२२॥ स्वामी मरा मम, रहा मम प्राण प्यारा, यों शोक नित्य करता जड ही विचारा। पै डूबता भव पयोनिधिमें निजीकी, चिंता कभी न करता गलती यही की ।।२२।। નહિ શોચતો સંસારમાં ડૂબેલ પ્રાણી આત્મને, પરની કરે ચિંતા એ મારું સ્વામીનું એમ માનીને. ૨૨ अर्थ- ये जीव इस संसाररूपी महासमुद्रमें पडे हुए अपने आत्मकी चिन्ता तो नहीं करते हैं, किन्तु यह मेरा है और यह मेरे स्वामीका है, इस प्रकार मानते हुए एक दूसरेकी चिन्ता करते हैं । આ સંસારરૂપી મહાસાગરમાં ડૂબેલો આવ, પોતાના આત્માની તો જરાય ચિંતા કરતો નથી, પણ બીજાઓની ચિંતા કરે છે; વળી આ મારું છે, એ મારા સ્વામીનું छ, मेम मान्या 3रे छे. बारस अणुवेक्खा २७

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