Book Title: Baras Anupekkha
Author(s): Kundkundacharya, Vidyasagar, Chunilal Desai, Atmanandji Maharaj Maharaj
Publisher: Satshrut Sadhna Kendra
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जाइजरमरणरोगभयदो रक्खेदि अप्पणो अप्पा । तम्हा आदा सरणं बंधोदयसत्तकम्मवदिरित्तो ॥११॥
लो रोगसे जननमृत्यु जरादिकोंसे, रक्षा निजात्म निजकी करता अघोंसे । त्रैलोकमें इसलिए निज आतमा ही, है वस्तुतः शरण लो अघ खातमा ही ॥११।।
રક્ષા કરે આત્મા સ્વયં જનિ મૃતિ જરા ભય રોગથી, તેથી શરણ નિજ આત્મ છે ભિન્ન બંધ સત્તા ઉદયથી ૧૧
अर्थ- जन्म, जरा, मरण, रोग और भय आदिसे आत्मा ही अपनी रक्षा करता है; इसलिये वास्तवमें ( निश्चयनयसे ) जो कर्मोकी बंध, उदय और सत्ता अवस्थासे जुदा है, वह आत्मा ही इस संसारमें शरण है। अर्थात् संसारमें अपने आत्माके सिवाय अपना और कोई रक्षा करनेवाला नहीं है। यह स्वयं ही कर्मोको खिपाकर जन्म जरा मरणादिके कष्टोंसे बच सकता है।
पोतानो माम! o Trम, १२, म२९, रोग, मययी पोतानी २६॥ 3रे छ. કર્મોનાં બંધ, સત્તા, ઉદયથી પોતાનો આત્મા ભિ4 જાણી, પોતાનો આત્મા જ પોતાને શરણ છે.
१६ बारस अणुवेक्खा