Book Title: Banna Hai to Bano Arihant
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 24
________________ संत वह जो शांत है। तम संतों के सान्निध्य में संत न बन पाए तो क्या, शांत तो हो ही सकते हो। संत के पास जाकर हमारे अन्तर्घट में यदि शांति का झरना नि:सृत न हुआ तो वह संत, संत न हुआ। संत का चित्त शांत है, उसका आभामंडल निर्मल है, तो निश्चित ही उसके पास जाने से, पास बैठने से भीतर शांति का स्रोत, शांति का संगीत, शांति का छत्र हमारे आसपास निर्मित हो जाता है, स्वयमेव अनायास। __ मानवजाति का इतिहास हिंसा से भरा हुआ है। हम बातें भले ही अहिंसा की करते हों, करुणा के गीत गाते हों लेकिन अन्दर तो हिंसा ही भरी है। कोई भी जन्म से अहिंसक और करुणावान नहीं होता।अहिंसा उसे लानी पड़ती है, करुणा आत्मसात् करनी होती है। हमारा अतीत पशु का रहा है लेकिन भविष्य परमात्मा होने का है। हमारा वर्तमान यदि मनुष्य का न होता, तो हर भविष्य भी पशुता से ही गुजरता। पिछले पच्चीस सौ वर्षों में केवल भारत में ही पाँच हजार युद्ध लड़े गए। आप जानते हैं कि एक संस्कृति के विकास में बीस वर्ष लगते हैं, तो इन युद्धों से कितना विनाश हुआ? विकास की धारा रुक ही गई । हम बातें तो अहिंसा की करते हैं, मंचों पर से अहिंसा के कपोत उड़ाते हैं, शांति के श्वेत कबूतर उड़ाते हैं । फैक्ट्री बम की चलाएँगे और बात अहिंसा की करेंगे। बात 'सत्यमेव जयते' की करेंगे और भ्रष्टाचार में डूबे मिलेंगे। हमारे यहाँ ज़्यादा हिंसा है, अहिंसा कम है। हम आतंकवाद और उग्रवाद फैलाते हैं, बम और कारतूस बनाते हैं, ये सारी व्यवस्थाएँ करने वाले हम लोगों में से ही है। बाहर से तो मनुष्य बहुत सात्विक, अच्छा और पवित्र दिखाई देता है लेकिन अंदर आतंक और उग्रता के भाव गहराई तक जमे हुए हैं। विभिन्न शांति संगठनों के रहते देश तो नहीं लड़ते, पर समाज-समाज ही लड़ रहे हैं। हथियारों से नहीं तो बातों से ही लड़ रहे हैं। लड़ाई का मुद्दा न मिले तो किसी मंदिर या तीर्थ को ही माध्यम बनाकर लड़ेंगे। लड़ाई तो हमारी प्रकृति है, प्रवृत्ति है। 'जंग तो खुद ही एक मसला है, जंग क्या खाक मसलों का हल देगी?' जो स्वयं ही समस्या है, वह हमें समाधान कैसे दे पाएगी? ईराक ने इतना युद्ध करके क्या पाया? सिर्फ खोया ही खोया। कोई भी अपने अहंकार और दर्प को रखने के लिए युद्ध के मैदान में जाएगा तो सर्वनाश ही होगा। केवल बीसवीं सदी में हुए युद्धों में बारह करोड़ से अधिक लोग मारे गये हैं। इसलिए 'ए शरीफ इन्सानों! जंग टलती रहे, तो बेहतर है, मेरे और आपके आंगन में शमा जलती रहे, तो बेहतर है।' प्रेम, करुणा और अहिंसा की शमा का जलना ही श्रेष्ठ है। 'बरतरी के सुबूत की खातिर खू बहाना ही क्या जरूरी है, घर की तारीकियां मिटाने को घर जलाना क्या जरूरी है'- अपने बड़प्पन, अपने अहंकार और अपने स्वाभिमान को दिखाने के लिए क्या लड़ना जरूरी है? माना घर में गहन अंधकार है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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