Book Title: Banna Hai to Bano Arihant
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 90
________________ सफल हो हमारी रातें एक पुरानी घटना है। इशुकार नगर में राजपुरोहित भृगु रहता था। नगर का राजपुरोहित होने से हर प्रकार की सुख-सुविधा उपलब्ध थी, लेकिन भृगु को हर समय संतान का अभाव खटकता था। यौवन ढल ही चला था। एक दिन भृगु की पत्नी यशा ने किसी प्रकाश-पुंज को अपनी कोख में उतरते देखा। उसने यह भी देखा कि वह दिव्य पुंज दो भागों में बँट चुका है, विकसित हुआ और परमात्मा के महामार्ग का अनुसरण कर रहा है। यशा यह स्वप्न देखकर बहुत प्रमुदित हुई। उसने समय पर दो संतानों को जन्म दिया। दोनों पुत्र बड़े होने लगे। लेकिन भृगु ने उनके लिए यह नियम-मर्यादा बना दी कि वे दोनों किसी भी संत से मेल-मिलाप न कर पाएँ, किसी संत का चेहरा भी न देख पाएँ। दोनों बच्चों के मन में संतों के प्रति, श्रमणों और ऋषियों के प्रति नफ़रत और घृणा की आग भर दी गई। लेकिन योगानुयोग, दोनों बालक नगर के बाहर क्रीड़ा कर रहे थे, उन्होंने संतों को देखा और पेड़ पर चढ़कर छिप गए। लेकिन उनकी करुणा से भरी, प्रेम भरी, धर्म भीगी चर्चाओं को सुनकर वे दोनों प्रभावित और प्रमुदित हुए। वे संतों के पास पहुँचे। संतों ने उन्हें आत्म-ज्ञान का प्रतिबोध दिया। उन्होंने चर्चा के मध्य आत्म-ज्ञान की पूर्ण संभावनाएँ और संसार के दलदल की संभावनाओं का परिचय कराया। दोनों बालक घर पहुँचे और अपने माता-पिता से कहा कि हम परमात्मा के महामार्ग का अनुसरण करना चाहते हैं। आप हमें अनुमति दें। 189 189 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only

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