Book Title: Banna Hai to Bano Arihant
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 104
________________ अभिनिष्क्रमण। __इस भेद-विज्ञान के प्रगट होने पर जीवन में अनासक्ति का आविर्भाव होता है, अन्यथा हम अधिकारों और संबंधों से जुड़े रह जाते हैं। हम अधिकारों के लिए लड़ेंगे, अधिकारों के लिए न्यायालय में पहुँचेगे। किसका अधिकार, कैसा अधिकार ! वे ज़मीनों के टुकड़े, जिन पर तुम आधिपत्य जमाना चाहते हो वे वास्तव में जमीनें हैं भी? हर वह जमीन श्मशान-कब्रिस्तान है जिस पर तुम कब्जा जमाना चाहते हो।अभी जिस स्थान पर तुम बैठे हो, विज्ञान कहता है इस दो वर्ग फुट जमीन पर पहले कम-से-कम दस लोग दफन किये जा चुके हैं या राख किये जा चुके हैं। तुम कब्रिस्तान और मरघटों पर अधिकार जमाने के लिए इतनी हाय-तौबा मचा रहे हो? अधिकार की लालसा तो इतनी तीव्र है कि स्थानक, मंदिर जराजीर्ण हो जाएँ तब भी उन्हें तोड़ते नहीं क्योंकि अधिकार न चला जाए। मेरा तो निवेदन है कि जहाँ नए निर्माण कार्य हो रहे हों, वहाँ खंडहर हो चुके मंदिरों की प्रतिमाओं को स्थापित कर दो। उस जराजीर्ण मंदिर के कलात्मक पत्थरों को नवीन निर्माण में लगा दो, तुम्हारी वस्तुओं का उपयोग भी हो जाएगा और उनकी सुरक्षा भी। मेरे देखे, इस धरती पर जितना विनाश इस अधिकार-भाव ने किया है अन्य किसी ने नहीं किया। इसलिए उपयोग होना चाहिए। कब यह रेत का घरौंदा नीचे गिर पड़े और खंडहर हो जाए कुछ मालूम नहीं है। इसीलिए तो कहा है 'तुम रखो स्वर्ण पिंजर अपना अब मेरा पथ तो मुक्त गगन। बंधन में फँसने के पहले, यह सत्य जान मैं था पाया। नभ छाया है इस धरती की, धरती है इस नभ की छाया। दोनों की गोद खुली चाहे मै नभ में मुक्त उड़ान भरूँ। चाहे धरती पर उतर तृणों, रजकणों आदि को प्यार करूँ। दोनों के बीच नहीं बंधन अवरोध दुराव परायापन। तुम रखो स्वर्ण पिंजर अपना, अब मेरा पथ तो मुक्त गगन। मैंने जान ही लिया कि धरती और आकाश के मध्य न कोई बंधन है, न कोई दुराव है, न कोई परायापन है। भले ही धरती और आकाश के मध्य इतना फासला दिखाई देता हो, लेकिन जो आत्ममुक्ति का गीत गा चुका है,उसके लिए कहाँ धरती और आकाश के बीच दूरी। उसके लिए तो एकत्व है, दोनों के बीच समता है। दुराव नहीं है, आत्मा और परमात्मा के बीच, बंधन और मुक्ति के बीच। जैसे ही पिंजरे से बाहर निकले, पंख फैलाये, पूरा खुला आसमान है। 1103 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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