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है। बस भीतर की पकड़ छोड़ने की ज़रूरत है, पंखों को खोलने की ज़रूरत है। यही मुक्ति का प्रवेश-द्वार है। पकड़ का नाम बँधन है और पकड़ के छूट जाने का नाम ही मुक्ति है ।
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जहाँ हो, वहीं रहो, कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है, बस पकड़ छूटनी चाहिए। भीतर ध्यान घटित हो जाना चाहिए। व्यक्ति तो मुक्त है और रहेगा। वह हमेशा से ही मुक्त था। बंधन में तो उसने खुद अपने आपको डाला है। वह मुक्त रहेगा तभी तक, जब तक वह अपने आपको विनिर्मुक्त बनाए रखेगा। सब कुछ हम पर निर्भर करता है । सवालों का जवाब तो मैं दूंगा, लेकिन यह पहले पता लगा लो कि वास्तव में हम संसार में कितने डूबे हुए हैं, और उससे मुक्त होना चाहते हैं? सही में मुक्ति पाना चाहते हैं, तब तो लंगर भी खोले जाएँगे, पतवार भी दी जाएगी। यदि ऐसा नही है तो पतवारें भी होंगी, नाव भी होगी, सामने किनारा भी दिख रहा होगा, मगर यात्रा नहीं हो पाएगी, क्योंकि लंगर खोलने का दिल नहीं करता। लंगर बड़े रसीले, सुहावने जो लगते हैं ।
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पार होने का पहला सूत्र है - व्यक्ति जागे । आँखें बंद रहती है या खुलीं, बातें करते हो या मौन रहते हो, यह बात अर्थ नहीं रखती। सिर्फ़ चेतना जग जाए, तो मानो सब चीज जग गई । पहला सूत्र सजगता ही है । छोड़ कर मत भागो, जहाँ हो, श्रम करो, श्रम से विमुख मत बनो। समाज में रहो तो समाज से विमुख मत बनो। कर्मयोग करो, कर्मयोग से विमुख मत बनो । प्रतिदिन कर्म हो और प्रतिदिन अपने अन्तर्मन में वापसी हो जाए। अपने मूल स्रोत से जुड़े रहे तो चाहे जो क्रिया हो जाए हमारे द्वारा हर क्रिया कर्तव्य भर होती है और कोई भी कर्तव्य कभी कर्म-बन्धन का कारण नहीं होता । यदि भीतर निर्लिप्तता है, सजगता है तो व्यक्ति कर्म तो करेगा, मगर वह निष्कर्म ही रहेगा। रोज-रोज भले आजीविका के साधन जुटाओ, मगर शाम होते ही अपने भीतर लौट कर देख लो कि कितने स्थिर हो । अपनी स्थिरता में, अन्तरस्थिति में, अन्तरदशा में विचलन नहीं होना चाहिए, जिसके कारण हम फिसल जाएँ । अन्तर्मन में इतनी सजगता हर वक़्त रहनी चाहिए ।
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महिलाओं को जब माहवारी होती है तो वे महीने में चार दिन के लिए संन्यस्त हो जाती हैं, अलग बैठ जाती हैं। पुरुषों को माहवारी नहीं होती, अच्छा होता अगर पुरुषों को भी होती । हमेशा नहीं कर सकते तो कम से कम माह में चार-पाँच दिन तो ऐसे हों कि हम साधु की तरह का जीवन जीयें - निष्कलुष, निर्विकार । ऐसा कर लिया तो देखना कितना क्रांतिकारी परिवर्तन होता है। अपने आपकी मुक्ति के लिए, अपने स्वयं की पवित्रता व निर्लिप्तता के लिए, सजगता सार्थकता देगी। दिन में सुबह से शाम तक खूब काम करो । धन कमाओ, बाँटो भी, मगर शाम होते ही लौट आओ ।
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