Book Title: Banna Hai to Bano Arihant
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 113
________________ हासिल है, उन्होंने यहाँ भी कई रास्ते निकाल लिए हैं। लोगों ने अणुव्रत और महाव्रत जैसे शब्द ईजाद कर लिए। अब जरा विचार करें, व्रत तो आखिर व्रत होता है, वह 'अणु' और 'महा' कैसे हो सकता है। व्रत का अर्थ है 'विरत' होना, अलग होना, अब आप थोड़े अलग होते हैं या पूरे अलग होते हैं, यह आप स्वयं पर निर्भर है। अगर मन में अभी इच्छा बनी हुई है कि हम यह भी कर लें और वह भी कर लें तो अच्छा होगा कि जिसको छोड़ने का मन में संकल्प कर रहे हो, पहले जी भर उसका सेवन कर लो ताकि परितृप्त हो जाओ। जीवन में उस चीज के प्रति संकल्प या विकल्प ही मन में न उठे। ___ एक आदमी भोग करता है, मगर अटक जाता है, जबकि दूसरा भोग करता है और पार हो जाता है। यह अंतर क्यों है? जो भोग में अटक गया, वह संसारी हो गया और जो पार हो गया वह संन्यासी हो गया। कोई भी भोग बुरा नहीं होता, मगर जब कीचड़ में पैदा होकर कीचड़ में फँसे रह जाते हो, तो वह भोग जीवन का अभिशाप बन जाता है। महावीर ने विवाह किया, संतान भी हुई। उन्होंने भोग किया, मगर अटके नहीं, पार हो गए। जो अटक गया वो उलझ गया। फिर तो उसका सारा ज्ञान अपने भीतर के अज्ञान को ढकने का एक पर्दा भर रह जाता है। ___पार लगो तभी तो ज्ञान का अर्थ है। ऐसा ज्ञान किस काम का जो दूध और पानी को अलग-अलग करने की कला न दे सके। उस हंस में ज़रूर कोई खोट है जो दूध में मिला पानी अलग न कर सके। हमारे भीतर आसक्ति है, राग है, ममत्व है। छोड़ने के विकल्प भी होते हैं, मगर आदमी इन्हें नहीं छोड़ पाता। सुख भले ही क्षणिक हो, वह हमें आभास देता रहता है। सुख आह्वान करता है बार-बार कि चले आओ उसी अंधेरे में। आदमी जीता तो प्रकाश में है, मगर भीतर का घुप्प अंधकार बार-बार आवाज देता है। और आदमी को अंधकार ज्यादा अच्छा लगता है। कल जिस खुजली से पीड़ा हुई थी, आज वही खुजली फिर खुजलाने का निमंत्रण देती है। आदमी को खुजलाने में बड़ा आनंद आता है। जब खजली उठती है तो सारा ज्ञान एक तरफ धरा रह जाता है। खुजलाना उसके लिए ज़रूरी हो जाता है। बिना खुजलाए उसे चैन नहीं पड़ता। यह जीवन का यथार्थ है। आप पूछना ही चाहते हो कि पार लगने से रोकने वाली क्या चीज है, तो मैं यही कहूँगा कि हमारी आसक्ति ही हमें पार नहीं लगने देती। हमारे अपने ही बनाए लंगर जीवन की नौका को रोक कर बैठे हैं। जब आसक्ति का अंधकार उभरता है तो कुछ भी नज़र नहीं आता। जिस बीवी से झगड़ा कर आए हो,उस झगड़े को भूल कर फिर उसी अंधकार में लौट जाओगे। जिस धन ने चैन छीन लिया, उसी धन को कमाने के लिए घाणी के बैल बन जाओगे। 112| Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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