Book Title: Banna Hai to Bano Arihant
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 34
________________ में जाकर आवाज लगाओ, तो अपनी आवाज लौटती है, बरसती है। ठीक ऐसे ही हम जैसा कर्म करेंगे, दुर्गति वाला तो दुर्गति होगी, सद्गति वाला तो सद्गति होगी । गृह आपने देखा होगा मंदिरों में शिखर बनाए जाते हैं। किसी भी धर्म के उपासना में चले जाइए, आपको ऊँचे-ऊँचे गुम्बद या शिखर मिलेंगे। क्यों? क्यों नहीं आपके रहने वाले घरों की तरह सीधी-सादी सी छत बना दी जाए? केवल इसीलिए कि तुम जो मंत्र बोलो, वे वापस आकर तुम पर बरसें । ये मंत्र तुम्हारा ही अभिषेक करें, प्रतिध्वनित होकर । जैसा करोगे वैसा ही पाओगे। यह जानने के कारण ही कपिल कहते हैं कि इस मनुष्य को धन-धान्य से भरा हुआ सारा विश्व भी मिल जाए, तब भी मनुष्य तृप्त नहीं हो सकता । मनुष्य की कामना, इच्छा, तृष्णा, उस अनन्त आकाश की तरह है जिसका कोई ओर-छोर नहीं होता । मन आकाश है और मनुष्य क्षितिज जैसा है । क्षितिज में आकाश को कैसे उँडेला जा सकता है । क्षितिज की सीमा है, मनुष्य की भी सीमा है लेकिन आकाश की तृष्णा, कामना, इच्छा की कोई सीमा नहीं है। मन सोचता है - यहाँ इच्छा पूरी होगी लेकिन इच्छाएँ कभी तृप्त नहीं होती । क्यों? क्योंकि लाभ से लोभ बढ़ता जाता है । पाने की लालसा और बढ़ती है, मल्टीप्लाई होती है । बहुत गजब की बात है । जब तक न मिला, पाने की चाहत थी और जब मिल गया, पाने की आकांक्षा दुगुनी हो गई । लोभ दुष्पूर होता है। लोभ कब्ज़ के रोग जैसा है । शरीर स्वस्थ हो और कब्जियत हो जाए तो अनेक रोग घिर आते हैं। ऐसे ही मन में लोभ हो, तो मन के सौ रोग पनप जाते हैं । चिंता, तनाव, आसक्ति, अवसाद । ढेर सारे रोग । कब्ज़ शरीर का रोग है और लोभ मन का रोग है । जैसे कब्ज़ शरीर के कचरे को अंदर रोके रखता है, वैसे ही लोभ वस्तुओं के परिग्रह को, उनके प्रति ममत्व - बुद्धि को अपने भीतर रोके रखता है, बाँधे रखता है । लोगों को जकड़कर रखता है। गरीब इन्सान की गुरबत तो दिखाई दे रही है लेकिन लोभी छुपा हुआ गरीब है। मुझे तो लोभी से अधिक दरिद्र कोई दिखाई ही नहीं देता । सब कुछ है उसके पास, फिर भी फटेहाल । सिर्फ इकट्ठा करता है, पर इकट्ठा करना किस अर्थ का, अगर उस संग्रह का उपयोग न हुआ। वह धन भी वस्तु में तब्दील हो जाता है, जिसका उपयोग न किया जाए। धनी या निर्धन होना पैसे की अधिकता या कमी पर निर्भर नहीं है। जो पैसे का उपयोग करता है, वह धनवान है और जो उपयोग न करे, वही निर्धन । लोभी जीवन भर निर्धन ही बना रहता है । शास्त्र कहते हैं : मृत्यु के उपरांत लोभी को साँप बनना पड़ता है । वह सर्प - योनि में जन्म लेता है और उस धन पर कुंडली लगाकर उसकी रक्षा में जीवन व्यतीत करता है । न स्वयं उपयोग करता है और न अन्य किसी को करने देता है । शास्त्र कहते हैं कि लोभी जीव मृत्यु के बाद सर्प-योनि में जाएगा, लेकिन मैं तो Jain Education International For Personal & Private Use Only 33 www.jainelibrary.org

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