Book Title: Banna Hai to Bano Arihant
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 53
________________ हुए तो वही अंगुलिमाल जीवन के विकास के मार्ग में मृत्यु के निकट पहुँचा तब बुद्ध स्वयं वहाँ उपस्थित हुए और उसे आशीर्वाद देते हुए बोले- अंगुलिमाल तुम्हारी मृत्यु, मृत्यु नहीं आत्म-विजय का अभिषेक है, अरिहंत का उत्सव है। मनुष्य किसी भी प्रकार अपने अतीत का स्मरण कर सके, जाति-स्मरण ज्ञान हो जाए, तो पता चलेगा कि वह किन कुलों में, किन-किन जातियों में, किन-किन योनियों में गुजरकर आया है। व्यक्ति की असली साधना, पवित्रता तभी बन पाती है, जब जीवन में एक बार जाति-स्मरण का फूल खिल जाए पूर्व-जन्म के बोध का प्रकाश प्रकट हो जाए। अपने इस अतीत को गहराई से पहचान लें तो हमारे जीवन की सारी पर्ते, सारी चट्टानें,सारे पत्थर खुद ही तिरोहित हो जाते हैं ।ज्योति तो माटी के दीए में प्रकट होती है। इसलिए हम कहेंगे कोई भी व्यक्ति चाण्डाल नहीं होता, न ही ब्राह्मण, वैश्य और शूद्र होता है। व्यक्ति का स्वभाव ही ब्राह्मण होता है, व्यक्ति का स्वभाव ही क्षत्रिय होता है, व्यक्ति का स्वभाव ही वैश्य या शूद्र होता है। हमने जन्मजात जातियों को महत्व दे दिया। यह न देखा कि हमारे अन्दर कैसा चाण्डाल सोया है। यह न जाना कि हमारा स्वभाव अभी ब्राह्मण का है या चाण्डाल का, अभी हमारा स्वभाव सम्यक्त्व का है या मिथ्यात्व का, हमारे हृदय के घर में अभी अंधकार है या प्रकाश, हमारी आत्मा में कालुष्य है या स्वच्छता, मलिनता है या पवित्रता की गंगा। हम अपने स्वभाव के प्रति सचेत और सतर्क नहीं होते हैं। एक बार तो भूल ही जाओ कि तुम जैन या ब्राह्मण कुल में या किसी उच्च कुल में पैदा हुए हो ताकि जीवन में नए सिरे से यात्रा प्रारंभ हो सके। जब स्वयं को उच्च कुल, उच्च धर्म, उच्च वर्गीय रक्त संबंध से अलग करोगे, तब जीवन में नवीन चमत्कार घटित होगा। तुम्हारे भीतर के बीज में अंकुरण होगा जिसकी सौरभ चारों ओर बिखरेगी। वह तुम्हारे जीवन का कमल होगा, जिस पर सभी श्रद्धावनत होंगे। अब समय आ गया है कि हम पहचानें अपने स्वभाव को, अगर स्वभाव से तुम उच्च हो, अपने स्वरूप में प्रतिष्ठित हो, तब चाहे जिस कुल में पैदा हुए हो, प्रणम्य और उच्च ही हो। हमने केवल ब्राह्मण या क्षुद्र ही नहीं, और भी न जाने कितने विभेद कर रखे हैं। इतनी दीवारें खड़ी कर दी हैं कि जिसने धर्म के विशाल मंच को छोटेछोटे कमरों में बाँट दिया है। मानवता को ही विभाजित कर दिया है। हमारा स्वभाव बहुत संकीर्ण और संकुचित हो गया है। ___ चाण्डाल सचमुच ही अस्पृश्य होता है। कभी स्वयं के क्रोध रूपी चाण्डाल का दर्शन किया है? परहेज रखो अपने क्रोध, लोभ, प्रवंचना और अहंकार के चाण्डाल से। दुनिया में कोई सर्वाधिक कठिन कार्य है, तो वह किसी का स्वभाव बदलना है। करोड़ों का दान देना सहज है, एक माह का उपवास करना भी सहज है, आचरण के 52 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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