Book Title: Banna Hai to Bano Arihant
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 52
________________ पशुओं को पाल लेगा, उन्हें आश्रय भी दे देगा लेकिन मनुष्य को छूने से परहेज़ रखेगा। जिस परमात्मा के आप स्वयं को अनुयायी मानते हैं उनकी सभा में तो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, सूचित, अनुसूचित सभी जाति के लोग सम्मिलित होते थे। वह विभेद कर भी कैसे सकता है जिसकी सभा में सत्संग-श्रवण के लिए जानवर तक भी आ सकते हैं। ___ हमने हरिजनों को अपने धर्मस्थान में आने का अधिकार नहीं दिया है। हम उसे छू भी जाएँ तो स्नान करेंगे। तब आप उस माता को क्या कहेंगे, जो बच्चों का मलमूत्र साफ करती है,घर में झाडू-बरतन साफ करती है। तब क्या वह अस्पृश्य नहीं हो जाएगी? मनुष्य मनुष्य के बीच इतनी बड़ी दीवार! सारी मानव जाति को प्रेम, अहिंसा और करुणा की भावना से जोड़ने की आकांक्षा रखने के बावजूद हम अपने ही नौकर की उपेक्षा करते हैं। अपने घर की साफ-सफाई करने वाले से परहेज़ रखते हैं। मंदिरों का निर्माण केवल उनके लिए नहीं हुआ है, जो उच्च कुल में उत्पन्न हुए हैं। मंदिरों का निर्माण मनुष्यों के लिए हुआ है, उनमें भी विशेषतः उनके लिए जो अधम से अधम माने जाते हैं। उन्हें मन्दिरों में आने दो, अपने धर्मस्थानों में आने दो ताकि वे भी कुछ पवित्र, कुछ पुण्यात्मा, कुछ भव्यात्मा हो सकें। मन्दिर तो पापियों के लिए शरण-स्थल है, जहाँ जाकर वे अपने पापों का प्रायश्चित कर सकें। महावीर तो कहते हैं कि राजा श्रेणिक अगर मेरे दर्शन को आता है, तो मैं नहीं जानता कि वह कहाँ पहुँचेगा लेकिन घोड़ों के पाँवों के नीचे दबकर मरने वाला मेंढ़क जो मेरे दर्शन को आ रहा था निश्चित ही स्वर्ग पहुँच गया। महावीर के दरबार में तो, मेंढ़क को भी आने की इज़ाज़त है और हम एक इन्सान को धर्मद्वार में प्रवेश करने से रोकना चाहते हैं। यह हमारी भूल है। ___ ज्योति तो ज्योति है, चाहे वह सोने के दीये में प्रकट हो या माटी के दीये में। ज्योति माटी के दीये में भी प्रकट हो सकती है, आध्यात्मिक विकास चाण्डाल जाति के व्यक्ति में भी हो सकता है। मूल्य तो ज्योति का है, माटी या सोने का नहीं। हम सोने के दीये चढ़ा भी दें तो क्या, अगर उनमें ज्योति नहीं है। उस उच्च कुल का क्या करें, जिसमें पैदा होकर नीच कार्य करें। उस निम्न कुल में पैदा हुए को क्या कहें, जो दीया तो माटी का है फिर भी ज्योति प्रज्वलित है। क्षुद्र-से-क्षुद्र जीव में भी विराटसे-विराट संभावना छिपी रहती है। गिरा हुआ व्यक्ति जब उठना शुरू करता है तब वह शिखर की ऊँचाइयों को स्पर्श करता है। वाल्मीकि नामक डाकू जब उठना शुरू हुआ, तो महान ऋषि बना। अंगुलिमाल, जो अति रक्तपिपास था, मनुष्यों की हत्या कर उनकी अंगुलियों की माला अपनी देवी के चरणों में चढ़ाता था, जब उठना शुरू हुआ, उसकी चेतना में बुद्धत्व के स्पंदन शुरू हुए, चित्त में पवित्रता के स्फुलिंग प्रकट 151 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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