Book Title: Banna Hai to Bano Arihant
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 87
________________ गए, उसमें नई जान आ गई। बूढ़े महावत ने कहा : इसे बाहर निकालने का एक ही तरीक़ा है-ज़ोरों से नगाड़े बजाओ, युद्ध-दुन्दुभि बजाओ, रण के वाद्य बजाओ, तब देखो इस बिगुल को सुनकर इस हाथी में कहाँ से प्राण आते हैं। नगाड़े बजाए गए तब न जाने कहाँ से भीतर सोया हुआ गजत्व जाग उठा। उसने अपनी पूरी शक्ति लगाई और एक ही छलांग में दलदल से बाहर आ गया। - जब भगवान् से यही बात शिष्यों ने कही कि भगवन् ! बूढ़ा बद्धरेक हाथी दलदल से बाहर निकल आया। भगवान ने कहा मैं भी यही सोच रहा हूँ वह बूढा, उसमें भी इतना बल था कि वह दलदल से बाहर आ सकता है और तुम जो मेरे शिष्य हो, वीतराग और संबुद्ध के मार्ग पर आ चुके हो लेकिन फिर भी दलदल से बाहर नहीं आ पाए। तुम चाहे जिस रूप में, चाहे जिस वेश में हो फिर भी तुम्हारे अंदर काम-भोग की तरंग, काम-भोग की धारा अवचेतन में निरंतर बह रही है। तुम भी बाहर आ जाओ तो सौभाग्य कि कोई दुन्दभि बजी, किसी ने नगाड़ा बजाया और कोई दलदल से बाहर आया।और बाहर न आ पाया तो शरीर स्वस्थवसुडौल होते हुए भी वह जराजीर्ण हो चुका है। उसकी आत्मा मृत हो चुकी है, शिथिल और कमजोर हो चुकी है। जगाना शरीर को नहीं, अन्तरात्मा को है। अन्य कुछ न कर सको तो कमसे-कम आर्य कर्म तो करो। और कुछ नहीं तो सम्यक् व्यायाम, सम्यक् स्मृति और सम्यक् समाधि को तो उपलब्ध हो जाओ। बुद्ध ने कहा सम्यक् दृष्टि- अर्थात् हमारी दृष्टि में जो मिलावट हो रही है, कदाग्रह और पक्षपात हो रहे हैं उन सभी से अपनी दृष्टि को बाहर निकालो। मिलावट का अर्थ दुकानदारों वाली मिलावट नहीं है। आँखें जो हर चीज़ को कभी अपनी, कभी इसकी, कभी उसकी नज़र से देखती है, उस मिलावट को दूर करने की दूसरा चरण सम्यक् संकल्प- जो सही है, ठीक है, उसका संकल्प; जिद नहीं। मन में स्थिरता लाना ही संकल्प है। अब सम्यक् वाणी-वाणी, वचनों का सही प्रयोग, उपयुक्त कथोपकथन। बोलो मगर तौलकर, सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात्। सत्य भी बोलो तो उसमें माधुर्य होना चाहिए। सत्य कभी कड़वा नहीं होता, कड़वाहट तो भीतर भरी है जो सत्य को भी कटु बना डालती है। सत्य तो चिर मधुर है। मधुर झूठ से परहेज रखो तो अप्रिय सच से भी परहेज रखो। वाणी हो सम्यक्, सही और संतुलित। फिर कहते हैं -सम्यक् कर्मांत- उन कर्मों से परहेज रखो जिसमें किसी का अहित या बुराई छिपी है। उन कर्मों का अंत कर दो जिससे दूसरे की निंदा या नुकसान हो। वही कार्य करो जो स्वस्तिकर हो, कल्याणकारी हो। सम्यक् आजीव-आजीविका के साधन सम्यक्, सही-ठीक होने चाहिए। धनोपार्जन करो 8A Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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