Book Title: Baldiksha Vivechan
Author(s): Indrachandra Shastri
Publisher: Champalal Banthiya

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Page 4
________________ कारण एकदम ऐसा नियम नहीं बनाया जा सकता कि कोई भी दीक्षा न ले। फिर भी अयोग्य व्यक्तियोंको साधु बननेसे रोकना हमारा कर्तव्य है। अब यह प्रश्न खड़ा होता है कि अयोग्य किसे कहा जाय ? इसके लिए धर्मशास्त्रोंमें सब तरहका स्पष्टीकरण होने पर भी इसका निर्णय केवल दीक्षा देने वालों पर ही नहीं छोड़ा जा सकता। वे तो चेले और चेलियोंको वृद्धि के लिये प्रत्येक व्यक्तिको मूण्डनेके लिए तैयार हो जाते हैं। संघ या और किसी धार्मिक संगठनमें इतनी शक्ति नहीं है कि अयोग्य व्यक्तियोंको दीक्षित होनेसे रोक सके। ऐसी दशामें एक ही उपाय है कि इस प्रथाको कानून द्वारा रोकनेके लिए सरकारसे प्रार्थना की जाय। बालक शारीरिक मानसिक तथा आध्यात्मिक किसी भी दृष्टिसे सच्चे साधुके कठोर ब्रतोंका पालन नहीं कर सकता। वह प्रत्येक दृष्टिसे साधु बननेके अयोग्य होता है। अयोग्य व्यक्तियोंकी दीक्षा रोकनेका पहला पाया यह है कि बालकों को साधु बननेसे रोक दिया जाय । एकवार साधु बनने पर बालक संपत्ति रखना, विवाह करना, आदि सामाजिक अधिकारोंसे वंचित हो जाता है। उसके अधिकारोंकी रक्षाके लिए भी यह आवश्यक है कि जब तक वह समझदार तथा परिपक्क बुद्धि वाला नहीं हुआ है, उसे साधु न बनने दिया जाय । बीकानेर राज्यमें ऐसे धार्मिक संप्रदाय विद्यमान हैं जिनमें नौ दस वर्षके बालक तथा बालिकाओंको साधु बना लिया जाता है। इसमहा हानिकारक रिवाजको रोकने के लिए मैंने 'बीकानेर लेजिस्लेटिव असेम्बली' में 'बाल दीक्षा प्रतिबन्धक बिल रखनेका निश्चय किया है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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