Book Title: Atmaprabodh
Author(s): Jinlabhsuri
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 537
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रबोधः यात्म-| न्यथा कयं जिनाज्ञानुवर्तिनः साध्वादयस्तइंदनादिकं कुर्युरिति विवेकिनिर्विचार्य. त था श्रीमद्भगवत्यंगेऽपि विंशतितमशतकस्य नवमोद्देशके विद्याचारणजंघाचारणमुनी. नाश्रित्य शाश्वतीनामशाश्वतीनां च जिनप्रतिमानां वंदनस्याधिकारः स्पष्टतया निगदि तोऽस्ति, तथा तत्सूत्रं-विजाचारणस्स णं भंते तिरियं केवइए गाविसए पन्नत्ते ? ॥५३५॥ गो० सेणं इन एगेणं नप्पाएणं माणुसुत्तरे पवरे समोसरणं करेति श् ता तेहिं चेश्या वंदतिश्त्ता हं चेश्याइं वंदति, विज्जाचारणस्स णं गो० तिरियंएवतिएगतिविसए पन्नत्ता विज्जाचारणस्स एंनंते नढे केवत्तिए गतिविसए प० गो० से णं तो एगेणं नपाएणं नदणवणे समोसरणं करेत्ति श्त्ता तहिं चेश्या वंदश्श् त्ता दितिएणं नपाएणं पंमंगवणे समोसरणं करेति तिहिं चेश्याइं वंदति श्त्ता ततो प. डिनियत्तश्त्ता हमागबश्श् ता हं चेश्या वंदति, विकाचारणस्स णं गोयमा नढं एव तिए गतिविसए प० से णं तस्स गणस्स बालोश्यपडिकंते कालं करे For Private and Personal Use Only

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