________________
हिंसा मृत्यु है
१६
हैं, इसलिए उपभोग कम करो। पदार्थों का उपभोग कम हो, पानी का व्यय कम किया जाए, उपभोग का संयम किया जाए, यह सूत्र धर्म का नहीं, पर्यावरण-विज्ञान का है किन्तु सच्चाई दोनों में एक है । धर्म का आदमी कहेगाकम खर्च करो, संयम करो । पर्यावरण विज्ञानी की भाषा है-पदार्थ कम हैं, उपभोक्ता अधिक हैं, इसलिए भोग की सीमा करो। महावीर ने भोगोपभोग के संयम का जो व्रत दिया, वह पर्यावरण-विज्ञान का महत्त्वपूर्ण सूत्र है। पदार्थ ज्यादा काम में मत लो, अनावश्यक चीज को काम में मत लो, यह है संयम और इसी का नाम अहिंसा है, पर्यावरण-विज्ञान है। भविष्यवाणी भगवती की
__हम भगवती का प्रकरण पढ़ें। जैन काल-गणना के अनुसार अभी पांचवां आरा चल रहा है। जब पांचवा आरा (कालखंड) पूरा होने वाला होगा, छठा आरा (कालखंड) प्रारम्भ होगा तब इस विश्व में विचित्र स्थितियां वनेंगी। उस समय की स्थिति का वर्णन लोमहर्षक है । सबसे पहले समवर्तक वायु चलेगा। वह इतना प्रलयंकारी होगा कि पहाड़ भी प्रकम्पित हो जाएंगे। इस युग में भी कभी-कभी चक्रवात आते हैं, उसमें बैलगाड़ियां, कारें उड़ जाती हैं, वृक्षों से अटक जाती हैं । वह समवर्तक वायु इतना भयंकर होगा कि पहाड़ और गांव नष्ट हो जाएंगे, उनका अस्तित्व ही विलुप्त हो जाएगा । तीव्र आंधियां चलेंगी, जिससे सारा आकाश और सारी धरती धूल से भर जाएंगे । चन्द्रमा इतना ठण्डा हो जाएगा कि रात को कोई आदमी बाहर नहीं निकल पाएगा। सूर्य इतना गर्म होगा, इतना तप्त होगा कि आदमी झुलस जाएंगे । भयंकर ठंड और भयंकर गर्मी। बारेस भी होगी पानी की नहीं, अग्नि की वर्षा होगी, अंगारे बरसेंगे। आज कहा जा रहा है-जब परमाणु विस्फोट होगा, नाभिकीय युद्ध होगा तब आकाश अग्नि की लपटों से भर जाएगा, जीवजगत् प्रायः समाप्त हो जाएगा । जो बचेंगे, वे अन्धे, बहरे और रुग्ण रहेंगे।
भगवती सूत्र में कहा गया--जो मेघ बरसेंगे, वे रोग बढ़ाने वाले होंगे । उसका परिणाम होगा----मनुष्य, पशु, पक्षी, वनस्पति, कीड़े, मकोड़े नष्ट हो जाएंगे । पहाड़ों में केवल एक वैताढ्य पर्वत बचेगा, जिसे आज हिमालय कहा जाता है। शेष सारे पहाड़, अरावली और विध्याचल की घाटियां अपना अस्तित्व खो देंगी। जो कुछ लोग बचेंगे, वे हिमालय की गुफाओं में रह जाएंगे। वे दिन में बाहर निकल सकेंगे, न रात में बाहर निकल सकेंगे । केवल संधिकाल में थोड़े समय के लिए बाहर आ पाएंगे । नदियां प्रायः सूख जाएंगी। केवल गंगा और सिन्धु का थोड़ा-सा तट अवशेष रहेगा । वे बचे लोग कुछ मछलियां खाकर जैसे-तैसे अपने जीवन का यापन करेंगे। जैसे चहे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org