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चाहता है सुख, जाता है दुःख की दिशा में
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महावीर की परिभाषा
महावीर ने कहा---आदमी चाहता है सुख और जाता है दुःख की दिशा में । वह मूढ व्यक्ति अपने द्वारा कृत कर्म से विपर्यास को प्राप्त होता है, सुख का अर्थी होकर दुःख को प्राप्त करता है सुहट्ठी लालप्पमाणे सएण दुक्खेण मूढे विप्परियासमुवेति । हम इस आधार पर सुख और दुःख की परिभाषा करें। महावीर की वाणी के अनुसार सुख और दुःख की परिभाषा होगी-मूर्छा दुःखम्, अमूर्छा सुखम् । मूर्छा है दुःख, अमूर्छा है सुख । जहां मूर्छा प्रबल बनती है, इन्द्रिय का अनुकूल संवेदन भी दुःख में बदल जाता है, मानसिक संवेदन भी दुःख में बदल जाता है। मूर्छा है भावात्मक अवरोध । क्रोध, भय, ईर्ष्या, अहंकार--ये सब मूच्र्छा के प्रकार हैं। जहां-जहां मूर्छ आती है, आदमी दुःखी बन जाता है। मूर्छा के कारण आदमी दुःख का संवेदन करता है। दुःख का सबसे बड़ा कारण है मूर्छा । सुख का सबसे बड़ा कारण है अमूर्छा । मूर्छा और मोह मिटता है तो कभी विपर्यास नहीं होता। सुख-दुःख का सेतु
आदमी चलता है सुख के लिए और दुःखी बन जाता है। प्रश्न हैऐसा क्यों होता है ? सुख और दुःख के बीच एक सेतु है, उसे पकड़ा नहीं गया । महावीर ने बहुत अच्छा सेतु बता दिया। एक ओर व्यक्ति सुखार्थी है, दूसरी ओर दुःख है । इसका कारण है—व्यक्ति अपने ही दुःख से मूढ बना हुआ है । अबद्ध को कोई बांध नहीं सकता, अदु:खी कोई दुःखी नहीं बना सकता । दु:खी व्यक्ति ही दु:ख को पाता है । व्यक्ति दुःखी है इसीलिए वह दुःख पाता है । व्यक्ति में सुख की लालसा जागती है दुःख को मिटाने के लिए किन्तु भीतर दुःख भरा हुआ है, वह सुख की ओर कैसे जा पाएगा ?
हम इस सचाई को समझें । जब तक मूर्छा रहेगी, व्यक्ति दुःखी बना रहेगा । एक भाई ने कहा--मुझे डर बहुत लगता है। मोटर से यात्रा करता हूं, ट्रेन से यात्रा करता हूं तो लगता है—कहीं दुर्घटना न हो जाए। पुल पर चढ़ता हूं तो यह भय जागता है--कहीं पुल टूट न जाए, मैं गिर न जाऊं । वस्तुतः हम अपने ही डर से दुःखी बने हुए हैं, मूढ बने हुए हैं। नया ब्रह्मचर्य
___ जब तक मूर्छा को मिटाने या कम करने की बात नहीं सोची जाएगी तव तक हजारों-हजारों साधनों को पा लेने के बाद भी आदमी दुःखी बना रहेगा । यदि पदार्थों की उपलब्धि और भोग से व्यक्ति सुखी होता तो सबसे ज्यादा मुखी होते पश्चिमी देशों के नागरिक । अमेरिका, जापान, जर्मनी आदि देशों के नागरिक बहुत सुखी होते, जहां पदार्थों की कोई कमी नहीं है, धन की
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