Book Title: Astittva aur Ahimsa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 184
________________ १६६ अस्तित्व और अहिंसा गए हैं। अहिंसा के क्षेत्र में यह कहा गया- - अमुक व्यक्ति के लिए अमुक को बचाया जा सकता है । महाभारत का प्रसिद्ध सूक्त है—' न मानुषात् श्रेष्ठतरं हि किञ्चित्' - मनुष्य से श्रेष्ठ कुछ नहीं है, इस धारणा के आधार पर कितनी हिंसा हो रही है। एक आदमी के लिए लाखों-लाखों मेंढक, खरगोश और बन्दर मारे जा रहे हैं, भेड़ बकरियों की कोई गिनती ही नहीं है । यह सब किसलिए ? केवल आदमी के लिए। यह मान लिया गया - ‍ - मनुष्य से उत्तम कोई प्राणी नहीं है इसलिए मनुष्य के लिये जो कुछ भी किया जाए, वह सब क्षम्य है । दवाइयों के परीक्षण के लिए लाखों चूहे, मेंढक, बन्दर आदि मार दिए जाते हैं । क्यों ? इसलिए कि मनुष्य को बचाना है । एक भेदरेखा खींच दी गई - मनुष्य ऊंचा है, शेष सब नीचे हैं । संहार की पद्धति क्या एक इस सारे सन्दर्भ में हम महावीर की इस वाणी का मूल्यांकन करें'जिसे तू मारना चाहता है, वह तू ही है' । एक मेंढक को मारते वक्त यह प्रकम्पन क्यों नहीं होता कि मैं अपने आपको ही मार रहा हूं । मनुष्य के लिए इतने निरीह प्राणियों की हत्या उचित है ? आदमी का नश्वर शरीर क्या इतना महत्त्वपूर्ण है ? मनुष्य का अपने प्रति इतना दीवानापन क्यों हैं ? मैं इसे समझ नहीं पा रहा हूं । इतनी हिंसा, इतना अतिक्रमण, इतने निरीह जीवों का उत्पीड़न केवल एक मनुष्य को बचाए रखने के लिए है । इसे कैसे वैध ठहराया जा सकता है ? लोग कहते हैं- आतंकवाद न बढ़े। वह क्यों नहीं बढ़ेगा ? जब मनुष्य की वृत्ति हिंसा करने की बन गई और यह एक भेदरेखा खींच दी गई तो हिंसा को बढ़ना ही है । उसे रोका नहीं जा सकता है । मैं मानता हूं थोड़ी बहुत हिंसा के बिना जीवन नहीं चल सकता । जैन धर्म का यह मंतव्य रहा - हिंसा का अल्पीकरण हो । चिकित्सा की एक पद्धति अहिंसा की दृष्टि से निकाली गई । विचार किया गया -- हिंसा कम से कम हो । वनस्पति- चिकित्सा का कार्य शुरू हुआ किन्तु जहां मांस- चिकित्सा की बात आई, सारा मामला गड़बड़ा गया । जैनाचार्यों ने इसे त्याज्य बतलाया । एक ग्रन्थ है - कल्याणकारकं । उसमें मांस- चिकित्सा पर कटु प्रहार किया गया है । आज मनुष्य को बचाने वाली चिकित्सा पद्धति लाखों-करोड़ों प्राणियों के संहार की पद्धति बन गई है । अभेद को देखें हम हिंसा से हिंसा के अल्पीकरण की ओर जाएं, अभेद को देखते चले जाएं तो अहिंसा का विकास होगा, क्रूरता कम होगी । आज स्थिति यह हैशुद्ध दवा का मिलना मुश्किल हो गया है । इस समस्या के सन्दर्भ में हम इस सूत्र को मूल्य दें, अभेद चेतना जगाएं तो समाधान का सूत्र हमारे हाथ में आ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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