Book Title: Astittva aur Ahimsa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 205
________________ आणाए मामगं धम्मं १८७ समझा जा सकता। हम षड्द्रव्य को जानेंगे तो सम्यग् दर्शन हो जाएगा किन्तु सम्यग् आचरण की बात समझ में नहीं आएगी। धर्म को जानना है तो नव-पदार्थ को जानना ही होगा । अस्तित्ववाद : उपयोगितावाद नव-पदार्थ साधना का मार्ग है, षड्-द्रव्य अस्तित्व का मार्ग है | दर्शन के ये दो अंग होते हैं---अस्तित्ववाद और उपयोगितावाद । अस्तित्ववाद को जानने का अर्थ है-जीव है, अजीव है, आकाश और पुद्गल है, यह जान लेना । जो उपयोगितावादी है, उसे जानना होगा— कौन-सा द्रव्य, कौन-सा तत्त्व मेरे लाभ का है ? उससे कैसे लाभ प्राप्त कर सकता हूं ? यह हिताहित विवेक की प्रक्रिया, अनुशीलन और आसेवन की प्रक्रिया उपयोगितावादी दृष्टिकोण से फलित होती है । अल्बर्ट आईंस्टीन ने कहा- -'मैं रोज सौ बार अपने आपको इस भावना से भावित करता हूं-तू देख ! तेरा जीवन कितने लोगों के श्रम से NET है | इसलिए तू श्रम कर, निकम्मा मत बैठ । अगर तूने श्रम नहीं किया तो तू उन सबके प्रति कृतघ्न बन जाएगा ।' हम भी जानें- कितने ज्ञात और अज्ञात तत्त्वों के श्रम से हमारा जीवन बना है । उनके श्रम के प्रति कृतघ्न न बनें । धर्म है संवर इस सचाई को जानें - यह जीवन क्या है ? अपने जीवन की परिभाषा को समझना एक गहन दर्शन है । हम स्वयं को जानें, अपने जीवन को जानें, जीवन की परिभाषा को जानें, जीवन के धर्म को जानें। इस सबको जानकर जो धर्म-दर्शन प्रस्तुत किया, उसे एक महावीर ने शब्द में कहें तो वह है संवर संयम । आत्मा का संवर करो, संयम करो, यही धर्म है । इस यही हमारा कर्त्तव्य है, क्योंकि धर्म को समझकर हम आज्ञा का पालन करें । कर्तव्य आज्ञा के बिना फलित नहीं होता । जब कर्तव्य चेतना जागती है, गुरु का आदेश हित-अहित की बात समझ में आ जाती है । कर्तव्य की चेतना को जगाने का सूत्र है-आज्ञा का जागरण । आज्ञा जागृत होगी तो धर्म समझ में आएगा, संयम और संवर की सार्थकता समझ में आएगी, 'आणाए मामगं धम्मं' इस सूक्त का रहस्य उपलब्ध हो जाएगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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