Book Title: Astittva aur Ahimsa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 226
________________ २०८ अस्तित्व और अहिंसा व्यक्ति आत्मा को देखने का प्रयास करता है, उसके सामने गांव और जंगल का प्रश्न गौण हो जाता है। जिस व्यक्ति के सामने आत्मा को देखने का प्रश्न नहीं है, उस व्यक्ति के सामने यह गांव और जंगल का प्रश्न एक जन्म तक ही नहीं, अनेक जन्मों तक प्रस्तुत रहेगा। हम आत्मा को देखने की दिशा में प्रस्थान करें। अकेली आत्मा को देखें, एकांत आत्मा को देखें । जिसने एकत्व अनुप्रेक्षा को ठीक से समझा है, एकत्व अनुप्रेक्षा को जीने का अभ्यास किया है, अपने अकेलेपन की अनुभूति की है, उसने साधना के रहस्य को समझा है । गंतव्य है एकत्व की अनुभूति भेद-विज्ञान, एकत्व-अनुप्रेक्षा, अन्यत्व अनुप्रेक्षा साधना का सबसे महत्त्वपूर्ण सूत्र है। श्वास प्रेक्षा शरीर प्रेक्षा आदि आदि साधन हैं किन्तु गंतव्य है एकत्व की अनुभूति । 'मैं अकेला हूं' इस अनुभूति तक पहुंचे विना लक्ष्य तक नहीं पहुंचा जा सकता। चाहे हम हजार बार श्वास-प्रेक्षा कर लें, शरीर प्रेक्षा या चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा कर लें, जब तक एकत्व की अनुभूति नहीं होगी, भेदविज्ञान की सिद्धि नहीं होगी तब तक समाधान नहीं होगा। एकत्व की अनुभूति ही समाधान दे सकती है । जब व्यक्ति अकेलेपन की अनुभूति में चला जाता है तब सारी स्थिति बदल जाती है।। संबंध चेतना : संबंधातीत चेतना व्यवहार का जगत् संबंधों का जगत् है। व्यवहार में रहने वाले व्यक्ति को उसे भी निभाना होता है। अकेलेपन की अनुभूति से सम्बन्ध चेतना के साथ-साथ संबंधातीत चेतना का विकास होता है। संबंधातीत चेतना का विकास करने वाला व्यवहार जगत् में रहते हुए, संबंधों का जीवन जीते हुए भी अपने भीतर रहता है, अपने आपमें रहता है। इस स्थिति का निर्माण करना साधना की पवित्रतम भूमिका है। व्यवहार में श्वास लेना और अपने आप में रहना । बाहर में जीना और भीतर में रहना, इस स्थिति का निर्माण साधना से ही सम्भव है। केवल इस बात की जरूरत है कि हम एकत्व की अनुभूति के प्रति जागरूक बने रहें । स्वर्णकार-वृत्ति साधना के क्षेत्र में स्वर्णकार-वृत्ति होनी चाहिए । एक संस्कृत श्लोक में स्वर्णकार-वृत्ति को परिभाषित करते हुए कहा गया है नित्यं जुहोति द्रव्याणि, चौर्यकारी दिने दिने । शत्रु मित्रं न जानाति, तस्याऽहं कुलबालिका ॥ संस्कृत विद्वान् ने एक कन्या से पूछ।---तुम कौन हो ? किन कुल की बालिका हो ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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