Book Title: Astittva aur Ahimsa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 235
________________ आचारांग का समग्र अनुशीलन अध्यात्म का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है आचारांग। इंगलैण्ड के एक भाई ने लिखा-'मैंने आयारो पढ़ा और पढ़ने के बाद मेरा दृष्टिकोण बदल गया।' पत्र की भाषा को पढ़ने से लगा-वह भाई दिगम्बर जैन परंपरा से संबद्ध है। उसने लिखा- 'श्वेताम्बर परंपरा में इतने महत्त्वपूर्ण तथ्य हैं, इसका मुझे अब तक पता नहीं था। मैं जैन विश्व भारती में तीन माह तक रहकर जैन दर्शन का अध्ययन करना चाहता हूं।' आयारो के अंग्रेजी अनुवाद को अनेक विदेशी विद्वानों ने पढ़ा है। इसके संदर्भ में उनकी प्रतिक्रियाएं भी बहुत महत्त्वपूर्ण रही हैं। अहिंसा का महान् प्रयोग आचारांग अद्वैत का कर्तव्यभरा ग्रन्थ है। आचारांग में केवल इतना ही नहीं बतलाया गया—किसी जीव को मत मारो किन्तु यह निर्देश भी दिया गया कि प्रत्येक प्राणी के साथ अद्वैत स्थापित करो। प्रत्येक प्राणी के साथ अद्वैत की अनुभूति अहिंसा का महान् प्रयोग है। जब तक यह अनुभूति नहीं जागती तब तक कोई अहिंसक बन नहीं सकता। जब तक प्रत्येक प्राणी के साथ एकात्मकता की अनुभूति नहीं जागती तब तक हिंसा का संस्कार टूटता नहीं है। वर्तमान समस्या यह है-आज हमारे दर्शन के विद्वान् अद्वैत की चर्चाओं में उलझे हुए हैं और उसका जीवन से कोई विशेष लेना नहीं है। चर्चा से परे हटकर जब तक दर्शन प्रायोगिक नहीं बनता तब तक दर्शन का पूर्ण विकास नहीं हो सकता। अद्वत ही अद्वैत __आचार्य श्री का जोधपुर में चातुर्मास था। मैं 'जैन दर्शन : मनन और मीमांसा' पुस्तक लिख रहा था । लेखन के दौरान जब अद्वैत का अध्याय लिखना शुरू किया तब मुझे ऐसा लगा कि मैं बिल्कुल अद्वैतवादी बन गया हूं। मैं अद्वैत की अनुभूति में चला गया और यह अनुभूति होने लगी, कहीं मेरा दृष्टिकोण तो नहीं बदल रहा है । वास्तव में जब हम स्थूल से सूक्ष्म की ओर जाएंगे तो हमारे सामने अद्वैत ही अद्वैत आएगा। अद्वैत का मतलब कोरा संग्रह करने से नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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