Book Title: Astittva aur Ahimsa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 227
________________ साधना कब और कहां ? २०६. वह स्वर्णकार की कन्या थी । उसने रूपक की भाषा में जबाब दिया--जो रोज होम करता है और रोज चोरी करता है । किसी का भेद नहीं करता, शत्रु और मित्र - दोनों जिसके लिए एक समान हैं, मैं उसकी या हूं | स्वर्णकार एक ऐसा व्यक्ति है, जो प्रतिदिन होम करता है और प्रतिदिन सोने की चोरी करता है । चाहे राजा का काम है, मित्र या भाई का काम है, स्वर्णकार थोड़ा बहुत सोना चुरा ही लेता है । साधक सुनार जैसा बने ध्यान करने वाला, साधना करने वाला साधक भी सुनार जैसा बने । जो साधक है, वह रोज अपनी वृत्तियों का होम करे । जो भी बात ग्रहण करने योग्य है, उसे ग्रहण करता चला जाए। चाहे वह कौन बता रहा है ? शत्रु बता रहा है या मित्र ? इसमें उलझे बिना, ग्रहणीय तत्त्व को प्रतिदिन ग्रहण करता चला जाए । यह वृत्ति जिसमें जाग जाती है, वह साधक साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ जाता है । यदि साधक एकत्व की अनुभूति के सूत्र को पकड़ लेता है, प्रतिदिन उसकी अनुभूति के लिए स्वयं को समर्पित कर देता है तो उसके सामने - साधना कहां करनी चाहिए - यह प्रश्न गौण हो जाता है । हम आत्मदर्शी बनें। जिसे आत्मदर्शन की थोड़ी-सी झलक मिल जाती है जिसके कदम आत्मदर्शन की दिशा में बढ़ जाते हैं, वह एक दिन गांव और जंगल के प्रश्न को समाप्त कर देता है । जब तक आत्म-दर्शन की झलक नहीं मिलती है तब तक देश और काल के प्रश्न पर भी विचार करना होता है । इस स्थिति में एकांत में बैठना भी जरूरी है, जंगल में साधना करना भी आवश्यक हो सकता है। जब तक साधना परिपक्व नहीं होती है तब तक देशकाल के प्रश्न पर भी चिंतन करना होता है | महत्त्वपूर्ण है साधना का संकल्प प्रातःकाल चार बजे से लेकर सूर्योदय तक का जो समय है, वह साधना के लिए उत्तम होता है । यदि उस समय दर्शन केन्द्र पर ध्यान किया जाए या किसी अन्य केन्द्र पर एकाग्र बनें तो हमें उसका अनुभव होने लग जाएगा । यह एक ऐसी अनुभूत सचाई है, जिसका कोई भी व्यक्ति अनुभव कर सकता है । हम साधना करने का संकल्प लें। कब और कहां करें, यह प्रश्न गौण हो जाए । यहां और अभी करें, यह संकल्प मुख्य बन जाए । क्षेत्र और काल की उपयोगिता हो सकती है किन्तु उससे भी महत्त्वपूर्ण है साधना का संकल्प | जिस दिन यह दृष्टिकोण जागेगा, साधना को व्यापक आयाम मिलेगा, गां और अरण्य का प्रश्न साधना में बाधक नहीं बन पाएगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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