Book Title: Astittva aur Ahimsa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 211
________________ प्रवचन ३५ • पुट्ठा वेगे नियति जीवियस्सेव कारणा । क्विंतं पितेस दुन्निक्वंतं भवति । । (आयारो ६ / ८४, ८५ ) • जीवियं नाभिकंखेज्जा, मरणं णो वि पत्थए । दुहतो वि ण सज्जेज्जा, जीविते मरणे तहा ॥ (आयारो ८ / ८ / ४ ) संकलिका • जाए सद्धाए णिक्खतो, तमेव अणुपालिया । विजहित्तु विसोत्तियं ॥ ● जाए सद्धाए निक्खंतो, परियायट्ठाणमुत्तमं । तमेव अणुपालेज्जा गुणे आयरियसम्मए ॥ • निष्क्रमण : सफलता के सूत्र - श्रद्धा का सातत्य धृति Jain Education International अप्रमाद जिजीविषा एवं मृत्यु-भय का परित्याग • महावीर का संबोध - मूत्र ० तर्कशास्त्र का सूत्र • आचार्य भिक्षु का पराक्रम • निष्क्रमण का लक्ष्य • भरत और ब्रह्मदत्त : इतना अन्तर क्यों ? (आयारो १ / ३६ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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