________________
ज्ञानी रात को जागता है
जीवन की अनेक क्रियाओं के चक्र में एक चक्र है सोना और जागना । आदमी रात में सोता है, दिन में जागता है। वह दिन में भी सोता है, रात में भी जागता है किन्तु सामान्यतः सोने का समय है रात्रि का और जागने का समय है दिन का । सोना और जागना-अलग-अलग भूमिका में अलग-अलग भाषा बन गई । आंखे बन्द हुई और आदमी सो गया, आंखे खुली, आदमी जाग गया, यह व्यवहार की भाषा है। अध्यात्म की भाषा में सोना और जागना एक विशेष अर्थ में प्रयुक्त हुआ है । एक व्यक्ति ऐसा है, जो चौबीस घण्टे सोता है और एक व्यक्ति ऐसा है, जो चौबीस घण्टे जागता है । भगवान् महावीर ने कहा-जो अज्ञानी है, वह चौबीस घण्टे सोता है। जो मुनि है, ज्ञानी है, वह चौबीस घण्टे जागता है। सुप्त की परिभाषा
___ अज्ञान का मतलब है सोना। ज्ञान का मतलब है जागना। अज्ञानी सदा सोता है। दिन में भी उसे पता नहीं चलता--प्रकाश है या सूरज है । सोने की परमार्थ की भाषा है-जो प्रमादी है, यह सदा सोता है। जो अप्रमत्त है, वह सदा जागता है। भय, विषय, कषाय, विकथा—ये सब प्रमाद के प्रकार हैं। जो व्यक्ति इन में रत रहता है, वह दिन रात सोया रहता है।
___ क्या शराबी कभी जागता है ? वह नशे में धुत रहता है। मद्यपी हमेशा सोया ही रहता है। उसकी चेतना अलग प्रकार की बन जाती है, सोचने ढंग भी अलग तरह का हो जाता है। वह उसीमें अपनी चेतना को गंवा बैठता है। इसी प्रकार जो आदमी विषय-लोलुप होता है, इन्द्रियों के विषय में आसक्त होता है, वह निरन्तर सोया रहता है। उसे दिन में भी इन्द्रिय जगत् के स्वप्न आते रहते हैं। इन्द्रिय जगत् से परे की सचाइयों को जानने का उसे अवकाश ही नहीं मिलता। कषायी व्यक्ति भी जागृत नहीं होता । वह कभी क्रोध में होता है, कभी लोभ और कपट का जीवन जीता है। ऐसे भावों में जीने वाले व्यक्ति को जागृत नहीं कहा जा सकता। उसे कभी सत्य का पता नहीं चलता । अध्यात्म की भाषा
जो विकथा में रहता है, वह भी जागा हुआ नहीं है । जो कभी कामकथा में रत रहता है, कभी भोजन की कथा और कभी राज-कथा में डूबा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org