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अस्तित्व और अहिंसा
दूसरों के बारे में सोचता है वह आतंक को नहीं देखता। हम यह नहीं सोचते कि केवल दूसरों के बारे में सोचने का परिणाम क्या होगा ? दूसरों के बारे में सोचना अपना अहित करने का, अपने आपको गिराने का सबसे सरल उपाय है । अपने बारे में सोचना, आत्मालोचन करना, यह अपने आपको उठाने का सबसे सरल उपाय है । यह कोरी अध्यात्म की बात नहीं है, जीवन की सफलता का सूत्र है । जो व्यक्ति जीवन में सफलता चाहता है, उसे आत्मनिरीक्षण या आत्मालोचन का मार्ग अपनाना ही होगा। जो इस मार्ग को नहीं अपनाता, उसकी मानसिक क्षमताओं का विकास नहीं होता, उसके जीवन में बार-बार मार्गावरोधक आते रहते हैं। दूसरों के बारे में सोचना बहुत खतरनाक वृत्ति है । विकास के लिए इससे बचना आवश्यक है । विचय की प्रक्रिया
आचारांग का दूसरा अध्ययन है-लोकविचय । विचय शब्द अतिप्राचीन है । आधुनिक शब्द हैं-अन्वेषण, रिसर्च, इन्वेस्टीगेसन, अनुसंधान । प्राचीन शब्द है विचय । लोक का विचय करो, इसका अर्थ हैशरीर के एक भाग को देखो। शरीर-प्रक्षा और कायोत्सर्ग क्या है ? ये दोनों ही विचय की प्रक्रियाएं हैं। वैसे ही मन का विचय करो। भीतर जमे हुए संस्कारों को देखो। कषाय का विचय करो, अपने कषायों को देखो। उसके बाद जो अंतिम सचाई है-चेतना-आत्मा, उस तक हम पहुंच जाते हैं । यदि हम केवल ऊपरी संस्कारों, कषाय की परतों तक ही रह जाते हैं, उसी व्यक्तित्व को अपना व्यक्तित्व मान लेते हैं तो असली और मौलिक व्यक्तित्व हमसे छिपा रह जाता है। महत्त्वपूर्ण परंपरा
लोकविचय और व्यक्तित्व के विश्लेषण की एक परंपरा रही है। वह बहुत महत्त्वपूर्ण परंपरा है। इसने वाल्मीकि का कल्याण किया है, अर्जुनमालाकार का कल्याण किया है । धर्म के क्षेत्र में जिन साधु-साध्वियों और श्रावक-श्राविकाओं ने विचय की पद्धति को अपनाया है, उन्होंने अपने जीवन को आलोक से भरा है । विचय के बिना आगे बढ़ने का रास्ता साफ नहीं होगा, हम इस सच्चाई को समझें, अपनी वृत्तियों और संस्कारों की आलोचना करने का संकल्प लें। जिस दिन यह संकल्प आकार लेगा, हमें देखने की एक नई दृष्टि मिलेगी और वह दृष्टि कल्याण की ऐसी सृष्टि करेगी, जिसके लिए मानव सदा तरसता रहता है ।
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