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अस्तित्व और अहिंसा
व्यवहार : कारक-तत्त्व
हमारे व्यवहार के ये तीन कारक-तत्त्व हैं-आत्मिक या कामिक योग्यता, वंशानुक्रम और परिवेश । मनोविज्ञान को पढ़ने वाला दो कारणों को जानता है किन्तु तीसरे कारण को नहीं जानता। एक ही घटना या परिवेश पर दो प्रकार की व्यवहार की प्रणालियां मिलती हैं । उसका कारण आंतरिकता से जुड़ा हुआ है। एक आदमी घटना पर एक प्रकार का व्यवहार करता है, दूसरा आदमी दूसरे प्रकार का व्यवहार करता है। इसका कारण क्या है ? किसी व्यक्ति ने गाली दी। एक आदमी उसे सुनकर क्रोध में आ जाता है, उत्तेजित हो जाता है। दूसरा व्यक्ति गाली सुनकर भी प्रसन्न बना रहता है। परिवेश और घटना एक है पर व्यवहार अलग-अलग है। ये हमारी चेतना की अलग अलग भूमिकाएं हैं। एक आदमी बहुत छोटी बात में उलझ जाता है, द्रष्टा नहीं रह पाता या वह पर-दूसरे को देखकर चलता है । जहां व्यक्ति द्रष्टा बन जाता है, वहां पर या दूसरा जैसी बात समाप्त हो जाती हैं। संदर्भ भोजन का
एक साधु भी खाता है और एक गृहस्थ भी खाता है। पारिभाषिक शब्दावली से हटकर कहें—एक भोक्ता भी खाता है, एक द्रष्टा भी खाता है । घटना एक है पर दृष्टिकोण अलग अलग हैं। द्रष्टा खाएगा जीवन-यापन के लिए, प्राण-धारण के लिए और संयम का निर्वाह करने के लिए। उसके खाने के पीछे मनोवृत्ति होगी-शरीर को पोषण देना है, गाड़ी को खंजन लगाना है, जिससे यह गाड़ी चल सके। खाने का दृष्टिकोण बदल गया, अध्यवसाय बदल गया । भीतर में खाना नहीं है, कुछ और है। बाहर घटना है खाने की
और भीतर घटना है संयम की। एक सामान्य आदमी खाता है स्वाद के लिए, हृष्ट-पुष्ट बनने के लिए । खाने के पीछे उसका दृष्टिकोण होता है-मैं अच्छा दिखाई दूं, रंग गोरा लगे, शरीर अच्छा लगे । वह इन सारी बातों की परवाह करता है किन्तु वह यह नहीं सोचतो-खाने का परिणाम क्या होगा ? यह भोजन उत्तेजना तो नहीं बढ़ाएगा? कार्टिजोन की मात्रा तो ज्यादा नहीं बढ़ेगी ? हमारा एक संबन्ध है-हाइपोथेलेमस, पिच्युटरी, एड्रीनल और एड्रीनल से कार्टिजोन-यह एक शृंखला है । कार्टिजोन की मात्रा बढेगी, तो कामवासना तीव्र हो जाएगी। इसकी मात्रा कम होगी तो कामउत्तेजना कम हो जाएगी। निर्देश का अर्थ
___ महावीर ने मुनि के लिए विधान किया—वर्ण को विशिष्ट करने और सौन्दर्य को बढ़ाने के लिए मुनि भोजन न करे, दवा न ले। वह बीमारी
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