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प्रवचन १३
| संकलिका
• सुहछी लालप्पमाणे सएण दुक्खेण मूढे विपरियासमुवेति ।
(आयारो २/१५१) • मज्झत्थो निज्जरापेही (आयारो ८/८/५) ० सुख : परिभाषाएं
दुःख का अभाव सुख है वांछनीयता की अनुभूति सुख है अनुकूल वेदनीय सुख है
अमूच्र्छा सूख है ० सुख : इन्द्रिय-संवेदन ० मूर्छा है भावात्मक अवरोध • दुःख पाता है दुःखी व्यक्ति ० भोग, पदार्थ और सुख ० नया ब्रह्मचर्य ० सुख का सूत्र ० अध्यात्म की निष्पत्ति
मैत्री, प्रमोद, करुणा, माध्यस्थ्य ० सुखी कौन ? ० अर्थ निर्जरापेक्षी का ० अनुभूत सत्य
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