Book Title: Astittva aur Ahimsa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 84
________________ अस्तित्व और अहिंसा ६६ नहीं है । यह सचाई है, अतीत में भोग रहा है, प्रबल भोगवाद रहा है । प्रश्न है- आज के युग को ही यह दोष क्यों दिया जा रहा है ? क्यों आरोपण किया जा रहा है कि यह भोगवादी युग है ? इसका कारण क्या है ? इसका भी एक कारण है । शब्द का कोई भी प्रयोग अकारण नहीं होता । प्राचीन काल में भी भोग था । जब से मनुष्य है तब से भोग है । पहले भोग था. किन्तु युग भोगवादी नहीं था । उस समय पर्याप्त अंकुश था, नियंत्रण था । 'धारणाएं भिन्न 'थीं । संयम का वातावरण था । इन दो शताब्दियों में, मुख्यतः इस शताब्दी M में भोग के बारे में धारणाएं बदल गई । जब धारणा बदलती है, दृष्टिकोण - बदलता है, युग का नाम भी बदल जाता है । पुराना युग भोग का होने पर भी भोगवादी नहीं कहलाया, क्योंकि भोग को एक विवशता माना गया, अनावरणीय माना गया । भोग : अभोग भोग के संदर्भ में एक स्थिति है अभोग की । कोई आदमी उसका प्रयोग ही नहीं करता । व्यक्ति ने उपवास किया, अभोग हो गया । खाया ही नहीं, त्याग हो गया । भोग के संदर्भ में तीन बातों पर बार-बार ध्यान देना चाहिए। पहली बात है—भोग के पीछे आसक्ति की मात्रा कितनी है ? दूसरी बात है—भोग की मात्रा कितनी है ? तीसरी बात है— आदमी जो 'भोग करता है, शरीर की आवश्यकता की पूर्ति करता है, उसके पीछे धारणा क्या है ? दृष्टिकोण कैसा है ? आसक्तेः कियती मात्रा, मात्रा भोगस्य कीदृशी । दृष्टिकोणः किंप्रकारः, भोगे चिन्त्यमिदं मुहुः ॥ भोगवाद परिणाम भोग के साथ जो आज भोग के बारे में दृष्टिकोण बदल गया । 'भोगातीत चेतना की एक अवधारणा थी, वह आज नहीं है। जहां भोग है वहां उसके साथ भोगातीत चेतना भी होनी चाहिए। आज यह दृष्टिकोण ही बदल गया, मूल दृष्टि ही नहीं रही, केवल भोगवाद चल रहा है । उच्छृंखल 'भोगवाद, उन्मुक्त भोगवाद के सिवाय कुछ लगता ही नहीं है । इसका परिणाम है, आज बीमारियां बहुत बढ़ गई हैं। अगर भोग के साथ भोगातीत चेतन का विकास होता तो इतनी बीमारियां नहीं बढ़तीं । यह आज का एक विकल प्रश्न है । बहुत बार डॉक्टर भी कहते हैं, इतने अस्पताल बढ़ते जा रहे हैं उन सब में मरीजों की भीड़ है । कहीं भी स्थान खाली नहीं है दवाइयां बनाने वाली इतनी बड़ी-बड़ी कम्पनियां बन गईं फिर भी न डॉक्ट को फुरसत है, न दवा देने वालों को फुरसत है, न दवा लेने वालों को फुरस है । चारों और रोग का एक चक्का चल रहा है । इसका कारण क्या है ? 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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