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प्रवचन ६/
| संकलिका
• एयं तुलमन्नेसि। • जे अज्झत्थं जाणई से बहिया जाणई
जे बहिया जाणई से अन्झत्थं जाणई (आयारो १११४७-४८) •से सव्वे पावादुया...."एगं महं मंडलिबंधं किच्चा एगओ चिट्ठति ।
पुरिसे य सागणियाणं इंगालाणं पाई बहुपडिपुण्णं अओमएणं संडासएणं गहाय ते..... "एवं वयासी-हंभो पावादुआ ! इमं.... 'गहाय मुहत्तगं मुहुत्तगं पाणिणा धरेह । तए णं ते..... 'पाणि पडिसाहरंति कम्हा णं तुम्भे पाणि पडिसाहरह ? पाणी णो डझज्जा ? दड्ढे कि भविस्सइ ? दुक्खं । दुक्खं ति मण्णमाणा पडिसाहरह, एस तुला, एस पमाणे, एस समोसरणे । पत्तेयं तुला पत्तेयं पमाणे पत्तेयं समोसरणे ।
(सूयगडो २:२७७) ० देखने की प्रक्रिया : तीन तत्त्व
अनध्यवसाय, प्रत्यभिज्ञान, अन्वेषण ० सतत संधान का अर्थ ० कठिन है नियम की खोज ० स्वयं को पढ़ें, दूसरों को पढ़ें ० दूसरों के आलोक में स्वयं को पढ़ें ० स्वयं के आलोक में दूसरों को पढ़ें ० शोषण-परिहार का सिद्धान्त ० क्रान्ति सूत्र : आचारांग
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